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ऋषि संदीपनि को विष्णु रूप में दर्शन | जरासंध का मथुरा पर युद्ध | श्री कृष्ण महाएपिसोड

Tilak 239,124 6 days ago
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महर्षि सन्दीपनि श्रीकृष्ण व बलराम को योग के माध्यम से सूक्ष्म शरीर के साथ यात्रा करने की विधि सिखाते हैं और इसका व्यवहारिक प्रयोग करते हुए अपने साथ बद्रीवन ले जाते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण का स्वयं अपने मूल चतुर्भुज स्वरूप भगवान बद्रीविशाल से साक्षात्कार होता है। उज्जयनी के ओर वापसी की यात्रा में गुरु सन्दीपनि मथुरा में महर्षि गर्ग के दर्शन करने के लिये रुकते हैं। महर्षि गर्ग श्रीकृष्ण का स्वागत करते हैं और उन्हें जगतपालक सम्बोधित करते हुए नमन करते हैं तो गुरु सन्दीपनि विस्मय में पड़ जाते हैं। वह महर्षि गर्ग से कहते हैं कि अभी तक तो मैं कृष्ण और बलराम को ऐसा प्रतिभाशाली शिष्य समझता था जिन्होंने मात्र चौंसठ दिनों में समस्त चौंसठ विद्याएं सीख लीं, किन्तु यहाँ आकर मुझे इनकी दिव्यता का पता चला है। इसपर महर्षि गर्ग बताते हैं कि ये स्वयं सर्वशक्तिमान भगवान नारायण हैं और उनके बगल में खड़े स्वयं अपने फन पर तीनों लोकों को धारण करने वाले भगवान शेषनाग हैं। गुरु सन्दीपनि की आँखें विस्मय से भर उठती हैं। वह पश्चाताप में कहते हैं कि मैं अपने ज्ञान के अहंकार में भगवान को भी नहीं पहचान सका और विद्यापति को ही विद्या सिखाता रहा। वह अपनी अनजानी भूलों के लिये प्रभु से क्षमा माँगते हैं और उन्हें माया के बंधन से मुक्त करने की प्रार्थना करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शेषनाग अपने वास्तविक स्वरूप में उन्हें दर्शन देते हैं और कहते हैं कि उनमें भगवान शिव के प्रति जो भक्ति है, उसके प्रभाव से वे माया से मुक्त होंगे किन्तु पूर्व कर्मों के अनुसार अभी तक कुछ सुख दुख के प्रभाव शेष है अतएव कुछ समय और वह माया के फेर में रहेंगे किन्तु अन्त समय आने पर उन्हें मोक्ष मिलेगा, वह बैकुण्ठ धाम में श्रीहरि के पार्षद बनकर रहेंगे। इसके बाद श्रीकृष्ण गुरु सन्दीपनि के स्मृति पटल से यह सब बातें मिटा देते हैं ताकि वह गुरु की मर्यादा का सही तरह से पालन करते रहें। तत्पश्चात तीनों विदेह यात्रा समाप्त कर अपने स्थूल शरीरों में वापस प्रवेश कर जाते हैं। श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा से मिलकर बताते हैं कि अपनी विदेह यात्रा के दौरान मैं तुम्हारी माँ से मिलकर आया हूँ। सुदामा को विश्वास दिलाने के लिये श्रीकृष्ण अपनी माया से उस कटोरे को प्रकट करते हैं, जिसमें सुदामा की माँ उसे माखन खाने को देती थी। वह सुदामा से कहते हैं कि मैं यह माखन तुम्हारी माँ से चुराकर लाया हूँ। सुदामा अपनी माँ के हाथों बना माखन पाकर प्रसन्न होता है। जब शिक्षा पूर्ण होने कृष्ण वापस जाने लगते हैं तो सुदामा रोने लगता है। मित्र की भावुकता पर कृष्ण कहते हैं कि यदि तुमने मुझे स्मरण रखा तो तुम्हारे बुलाने पर मैं अवश्य आऊँगा। श्रीकृष्ण और बलराम विदा लेते समय अपने गुरु से कहते हैं कि गुरु से मिली शिक्षा का ऋण कभी नहीं उतारा जा सकता किन्तु लोकरीति है कि शिष्य शिक्षा पूरी होने पर गुरु दक्षिणा दे अतएव आप जो उचित समझें, गुरु दक्षिणा देने का आदेश करें। सन्दीपनि ऋषि गुरु दक्षिणा के रूप में वचन माँगते हैं कि तुम दोनों अपनी शिक्षा का उपयोग जन कल्याण में करोगे और गुरु से जो शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं, उनका उपयोग अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध करोगे। इसके बाद श्रीकृष्ण गुरुमाता के चरणों में बैठकर उनकी इच्छा भी पूछते हैं। गुरुमाता इच्छा बताती हैं कि मुझे अपना मृत पुत्र वापस चाहिये। गुरु सन्दीपनि बताते हैं कि हमारे पुत्र पुनर्दत्त की मृत्यु स्नान के समय समुद्र मे डूबने से हुई थी। इसपर कृष्ण कहते हैं कि यह भी सम्भव है कि उसकी मृत्यु न हुई हो। उसे समुद्र की लहरें बहाकर किसी दूसरे देश ले गयी हों। श्रीकृष्ण उनके पुत्र को वापस लाने का वचन देते हैं और समुद्र किनारे पहुँचते हैं। वह धनुष से टंकार देते हैं जिसे सुनकर समुद्रदेव हाथ जोड़कर उपस्थित हो जाते हैं। कृष्ण उनसे गुरु सन्दीपनि के पुत्र पुनर्दत्त वापस करने को कहते हैं। समुद्रदेव कहते हैं कि मेरे जल में पान्चजन्य नामक एक राक्षस रहता है जो तट पर स्नान करने आये लोगों को खींचकर अन्दर ले जाता है और उनका भक्षण कर लेता है। सम्भवतः वही पुनर्दत्त को खाने के लिये ले गया होगा। इस समय वह राक्षस तलहटी में एक छोटे से शंख के अन्दर छिपकर विश्राम कर रहा है। कृष्ण और बलराम उस स्थान पर जाते हैं और राक्षस को ललकारते हैं। किन्तु राक्षस की निद्रा भंग नहीं होती। तब वे धनुष पर अग्नि से प्रज्वलित बाण चलाते हैं। इसकी गर्मी से अकुला कर राक्षस बाहर आता है और सूक्ष्म शरीर से विशालकाय बन जाता है। श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा। In association with Divo - our YouTube Partner #tilak #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna #shreekrishnamahaepisode

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