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@ Akshay Dholak master
सतनाम। सतगुरु। जय गुरु रविदास।
|| धन गुरु समनदास जी ||
अखिल भारतीय संत शिरोमणि गुरु रविदास मिशन ( रजि ०)
गद्दी - शुक्रताल, जिला- मुज्जफरनगर ( उ ० प्र ०) के
संस्थापक व अध्यक्ष- हृदय सम्राट परमपिता संत शिरोमणि अवॉर्ड्स से सम्मानित सतगुरु स्वामी समनदास जी महाराज।
आपका जन्म 1979 भादो मास पूर्णिमा सन् 1917 गांव - लाक, जिला - मुज्जफरनगर (उ ० प्र ०) में पिता जी श्री फूल सिंह और माता जी श्रीमती लक्ष्मी जी से अवतरित होकर आपने भूले भटके समाज को बाल्यकाल में ही घर त्याग कर व 12 साल की आयु में सभी वर्ग के लोगों को अच्छे और नेक कार्य पर लगाया है। आपने गंदे खान - पान मांस मदिरा अंडा इन सबको छुड़ाया। स्वामी जी योग्य गुरु को जगह जगह घूमते रहे पर 2-3 वर्ष बाद शुक्रताल तीर्थ पर गंगा किनारे स्वामी हरिदास जी से भेंट हुई। हरिदास जी उस समय के महान सिद्ध पुरुष थे। सेवा में लगे रहे एवम् दादा ज्ञान भिक्षुक दास जी महाराज जी ने आपको खेड़ी कर्मू, शामली जनपद मुज्जफरनगर में स्थित खड़ी तपस्या का आदेश दिया 41 दिन में आपने ये तपस्या पूरी की। और भभिसा कस्बा कांधला में भी आपने जमीन के नीचे 41 दिन तपस्या में बैठाया फ़िर आपको दादा ज्ञान भिक्षुक दास ने आपको समन दास जी के नाम से पुकारा।
और सतगुरु रविदास महाराज जी और बाबा साहेब डॉ आंबेडकर जी के मिशन को आपने गांव गांव शहर पैदल चल चल करके भूखे प्यासे घर जाकर आपने गुरु रविदास जी महाराज जी का प्रचार प्रसार किया एवम् आजीवन सच्चे ब्रह्मचारी रहें। और अनेकों दिन दुखियों के आपने कष्ट भी दूर किए। आपने सभी गरीब वर्ग के लोगों के लिए जिसमें सभी वर्ग के लोग अपनी मीटिंग व शादी कर सके उनके लिए अनेकों लगभग 250 आश्रम खोलें और 135 फुट ऊंचा आश्रम ऊण में स्थापित है, जिनमें गरीब के लिए हर समय भोजन की व्यवस्था है। और गरीब समाज की लड़की व लड़कों की शादियां आश्रम में की और गरीब समाज के बच्चों के लिए आपने फ़्री स्कूल भी खुलवाए। आपने शिक्षा और "सबसे पहले माता- पिता और बड़ों की सेवा पर पूरा ध्यान रखा" ताकि गरीब समाज के बच्चे शिक्षा ग्रहण करके ऊंचाईयों को छू सके। आपकी कृप्या से बहुतों के काम सुधरे हैं।
इन्हीं कार्यों को देखकर आपको वर्ष 2003 में "भारतीय दलित साहित्य अकादमी" द्वारा आयोजित सामाजिक न्याय सम्मेलन,तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में "संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज" अवॉर्ड से नवाजा गया था। जिसमें देश - विदेश से संत महात्मा आए हुए थे। और मंत्रिमंडल भी मौजूद थे। आपने कभी समाज से कुछ नहीं मांगा जो भी आपको आपके अनुयायियों ने अपनी इच्छानुसार दिया वही रखा और उसको आश्रमों व स्कूलों में लगा दिया आपने अपने भूख के लिए 1 रुपया भी नहीं पेट में खाया समाज का पैसा समाज में ही लगाया और न ही कोई किसी भी प्रकार का आपने खाता रखा। अगर आपको अापके अनुयायि ने वस्त्र पहनने को दिए तो आपने उन्हें खुद न पहन कर गरीबों को वितरित कर दिए। आपने ख़ुद हवन व सत्संग का सामान खरीदकर लोगों के घरों में गुरु रविदास जी का हवन सत्संग किया। किसी से कुछ नहीं लिया बस उनका समय मांगा।
आपने अपनी आयु न देखते हुए भी रात दिन एक कर दिया ताकि समाज जागे। आपने 100 साल की आयु पार करके भी आपने हार नहीं मानी आपसे आयु ही हार मान गई। आपने अपने स्वास्थ्य और नींद की भी चिंता नहीं की बस समाज के उत्थान के लिए लगे रहे। ताकि किसी ना किसी तरह समाज आगे बढ़ जाए। लाखों- करोडों लोगों को आपने अपनी शरण लगाकर सच्चा मार्ग दिखाया है। और भारत देश को शाकाहार बनाया है। और छुआछूत, आडंबर, सामाजिक कुरीतियां, अन्धविश्वास और पाखंडवाद, मूर्ति पूजा व बाल श्रम अन्य कुरीतियां आदि। से छुटकारा दिलाकर समाज में एक नई ऊर्जा व दिशा दी।
आपने कभी समाज से धर्म और सत्संग के नाम पर कोई चंदा इकट्ठा नहीं किया।
आपने कोई ऐशो आराम की जिंदगी नहीं जी जैसे कि कोई महल, कोठी, बंगले, लग्ज़री कारें, लग्ज़री जहाज़, महंगा भोजन आदि। किसी भी प्रकार की कोई इच्छा नहीं की बस आपने अपना सादा जीवन सादा रहन - सहन एवम् सादा भोजन पूरा समाज को ही समर्पित कर दिया। आपने न ही राजनीति को कभी महत्व नहीं दिया। लेखक:- अक्षय कुमार गौतम
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