राम जी की बारात एक भव्य और दिव्य आयोजन था, जिसमें अयोध्या से लेकर जनकपुर तक हर्ष और उल्लास की लहर दौड़ गई थी। चारों ओर मंगल ध्वनि गूंज रही थी, सैकड़ों हाथों में केसर और गुलाल उड़ाए जा रहे थे, और पूरे मार्ग को फूलों की मालाओं और रंग-बिरंगे वस्त्रों से सजाया गया था।
बारात के आगे-आगे सुंदर सजी हुई रथों की कतार थी, जिनमें वेदपाठी ब्राह्मण मंत्रोच्चारण कर रहे थे। हाथी, घोड़े और रथों की भव्य शोभायात्रा राजसी वैभव को दर्शा रही थी। भगवान राम के साथ उनके तीनों भाई—भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न—भी थे, जो तेजस्वी और अनुपम सौंदर्य से युक्त दिखाई दे रहे थे।
गुरु वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र और अन्य ऋषि-मुनि भी इस शुभ अवसर पर उपस्थित थे। शिव, विष्णु और ब्रह्मा के भक्तगण भजन-कीर्तन कर रहे थे, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया था।
नगरवासियों ने अपने घरों के द्वारों को रंगोली से सजाया था और दीपमालाएं जलाकर राम जी की बारात का स्वागत किया। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की ध्वनि थी, और स्त्रियाँ मंगलगीत गा रही थीं।
जनकपुर में राजा जनक स्वयं बारात की अगवानी के लिए पधारे, और जब राम जी रथ से उतरे, तो उनके दिव्य स्वरूप को देखकर समस्त नगरजन हर्ष से झूम उठे। यह बारात केवल एक विवाह यात्रा नहीं, बल्कि एक दिव्य उत्सव था, जो युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा।
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