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ये दुनिया किसने बनाई? ईश्वर, भगवान, या असली बात कुछ और है? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2024)

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वीडियो जानकारी: 03.06.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा

ये दुनिया किसने बनाई? ईश्वर, भगवान, या असली बात कुछ और है? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2024)

📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:55 - ईश्वर और भगवान की अवधारणा
17:00 - कौन हूँ मैं?
24:21 - मृत्यु के बाद क्या होगा?
30:50 - देह भाव का होना
36:53 - सत्य की खोज
45:46 - आध्यात्मिकता और विज्ञान
53:06 - आत्मा और ईश्वर
55:29 - समापन

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इस वीडियो में आचार्य प्रशांत ने संसार, ईश्वर, और आत्मा की अवधारणाओं पर गहन विचार किया है। उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि क्या संसार वास्तव में है या केवल एक दृष्टि है। उन्होंने ईश्वर और भगवान के बीच के भेद को स्पष्ट किया, यह बताते हुए कि भगवान का उपयोग सगुण और निर्गुण दोनों अर्थों में किया जाता है।

श्री प्रशांत ने यह भी बताया कि ईश्वर की परिकल्पना निर्गुण और निराकार है, जो प्रकृति को संचालित करता है। उन्होंने यह विचार प्रस्तुत किया कि प्रकृति स्वयं अपने नियमों के अनुसार चलती है और ईश्वर की वास्तविकता आत्मा में निहित है।

उन्होंने यह भी कहा कि आत्मा और प्रकृति एक ही हैं, और जो व्यक्ति इस सत्य को समझता है, वह अपने दुख और बेचैनी से मुक्त हो जाता है। अंत में, उन्होंने यह संदेश दिया कि आत्मा ही वास्तविक ईश्वर है और हमें अपने भीतर की खोज करनी चाहिए।
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प्रसंग:
~ ये दुनिया किसने बनाई?
~ भगवान किसे कहा जा सकता है ?
~ ईश्वर किसे कहा जा सकता है ?
~ प्रकृति की परिभाषा क्या है?

ईश्वरः सर्वनिर्माता नेहान्य इति निश्चयी।
अन्तर्गलितसर्वाशः शान्तः क्वापि न सज्जते ॥ २ ॥

अन्वय: सर्वनिर्माता = सबका पैदा करने वाला; इह = इस संसार में; ईश्वरः = ईश्वर है; अन्य = दूसरा कोई; न = नहीं है; इति = ऐसा; निश्चयी = निश्चय करने वाला पुरुष; अंतर्गलितसर्वाशा = अन्तःकरण में गलित हो गई हैं सब आशाएँ जिसकी; शान्तः = शान्त हुआ है; क्व अपि = कहीं भी; न = नहीं; सज्जते = आसक्त होता है ।।

भावार्थ: ईश्वर ही सबका निर्माता है, दूसरा कोई नहीं हैं। जो ऐसा निश्चय कर लेता है, उसकी सारी आशाएँ भीतर ही गल जाती हैं, वह शान्त हो जाता है और उसकी आसक्ति कहीं भी नहीं होती ॥ २ ॥

~ अष्टावक्र गीता, 11.2

संगीत: मिलिंद दाते
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