जय गंगा मैया कथा | गंगा मैया ने किया कई कृत्याओं का उद्धार
Tilak
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भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
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इंद्र देव जब अंधकासुर की तपस्या को भंग नहीं कर पता तो वह गंगा मैया के पास जाता है और उन्हें बताता है की मैंने उसकी तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा कर नहीं पाया। गंगा मैया इंद्र देव को कहती हैं की तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए तपस्या करने से वो अपनी शक्तियों को बढ़ा रहा है तो तुम भी सर्वतोभद्रे यज्ञ करने के लिए कहती है और दानवों से उनके यज्ञ की रक्षा करने का आशीर्वाद देती हैं। देव राज इंद्र और देव गुरु सर्वतोभद्रे यज्ञ करना शुरू करते हैं जिसे देख शुक्राचार्य उनके यज्ञ को ध्वस्त करने के लिए कृत्या को शक्तियाँ प्रदान करके स्वर्ग में भेजते हैं। कृत्या स्वर्ग में जाकर स्वर्ग लोक पर हमला कर देती हैं अग्नि देव और वायु देव कृत्या को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन रोक नहीं पाते। जब कृत्या यज्ञ को भंग करने के लिए अपनी शक्तियों से हमला करती है तो गंगा मैया अपना कवच बना कर उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं। जब कृत्या यज्ञ भंग नहीं कर पाती तो शुक्राचार्य उसे गंगा को बंदी बना कर पाताल लोक लने के लिए कहते हैं। कृत्या गंगा के पास जाती है और उन्हें अपने साथ ले जाने की कोशिश करती है। गंगा मैया उसे समझाती हैं की मेरे पाताल लोक में जाने का समय नहीं आया है तो कृत्या गंगा मैया को अपने साथ ले जाने के लिए गंगा मैया के जल में उतर जाती है तो वह गंगा के जल से पवित्र होने लगती है तो वह डर कर गंगा मैया से कहती है की तुम्हारा जल मायावी है तो गंगा मैया उसे बताती है की यह कोई माया नहीं है यह मेरा गुण है जो भी मेरे जल में आता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह पवित्र हो जाता है। कृत्या जब गंगा में सम्पूर्ण समा जाती है तो वह पाप मुक्त हो कर बाहर आती है। कृत्या गंगा मैया से प्रार्थना करती है की उसे अपने चरणों में स्थान दें। गंगा मैया कृत्या को अपने शरण में ले लेती हैं।
क्याधु के गर्भ में ही विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए शुक्राचार्य कृत्या का आह्वान करते हैं और उसे क्याधु के गर्भ में पल रहे बालक को मारने के लिए भेजते हैं। स्तंभासुर कृत्या को रस्ते में रोक लेता है तभी वहाँ शुक्राचार्य आ जाता है और स्तंभासुर को आकर श्राप दे देते हैं। और उसे आजीवन अंतरिक्ष में स्तंभित कर देते हैं। और उसे कहते हैं की जब तक गंगा पाताल लोक पर नहीं आएगी तब तक तुम ऐसे ही स्तंभित रहोगे। कृत्या को शुक्राचार्य आगे बढ़ने को कहते हैं और प्रलहाद की गर्भ में ही हत्या करने को भेज देते हैं। गंगा मैया स्तंभासुर को मिले श्राप के बारे में श्री हरी को बताने के लिए जाती है और अपने भक्त के भले के लिए कहते हैं। श्री हरी गंगा मैया को समझाते हैं की स्तंभासुर को यह श्राप उसके द्वारा किए गए कुकर्मों का फल ही है। कृत्या को रोकने के लिए सभी देवता अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन उसे नहीं रोक पाते। कृत्या क्याधु के पास पहुँच जाती है और क्याधु के भोजन के साथ उसके गर्भ में चली जाती है जैसे ही कृत्या प्रलहाद के पास जाती है तो वहाँ विष्णु का सुदर्शन प्रकट हो कर उसे आकर रोक देते हैं जिसे देख कृत्या क्याधु के मुख से बाहर निकल कर भाग पड़ती है लेकिन सुदर्शन चक्र उसका गला काट देता है। शुक्राचार्य कृत्या की मृत्यु पर क्रोधित हो उठता है।
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