फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी का अर्थ है, संकट से मुक्ति मिलना। इस दिन गणपति भगवान के द्विजप्रिय गणेश स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर पार्वती नन्दन गणेश जी के भक्त उनकी कृपा प्राप्ति हेतु कठिन व्रत का पालन करते हैं। इस व्रत के पालन हेतु चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी तिथि का चयन किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिव्य अवसर पर विघ्न विनाशक भगवान श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की विघ्न-बाधाओं का निवारण होता है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के भक्तगण सूर्योदय से चन्द्रोदय तक कठिन व्रत का पालन करते हैं। इस व्रत में भगवान गणेश के उपासकों द्वारा फलों, तथा भूमि के भीतर उगने वाले जड़ों अथवा वनस्पतियों का ही सेवन किया जाता है। अतः साबूदाना खिचड़ी, आलू तथा मूँगफली आदि को इस व्रत में उपयुक्त आहार माना जाता है। चन्द्र दर्शन के उपरान्त ही द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का पारण किया जाता है।
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