रसमय उपदेश :
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की काव्य रचनाओं में जो रस सिक्त तत्त्वज्ञान भरा है, वह इस बात का द्योतक है कि उनका अपना व्यक्तित्व भक्ति के परमोज्ज्वल स्वरूप से ऊर्जस्वित, जीव कल्याण की करुणामयी भावना से द्रवित एवं श्रीराधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस से ओतप्रोत है। भक्तियोगरसावतार की उपाधि प्राप्त श्री कृपालु जी महाराज हमारे वर्तमान विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु हैं। वेद-शास्त्रों के प्रमाणों पर आधारित उनके सारगर्भित प्रवचन तो वैदिक हिन्दू सनातन धर्म के वास्तविक सिद्धान्त को सरलता एवं स्पष्टता से समझने का प्रमुख आधार हैं ही, उनकी सरस संगीतमय संकीर्तन रचनाएँ भी सिद्धांत ज्ञान से परिपूरित हैं। श्री महाराज जी द्वारा रचित रसमय संगीतात्मक काव्य कृतियों में कितना गहन तत्त्व ज्ञान लबालब भरा है, इसका वास्तविक परिचय तब मिलता है जब वे स्वयं अपने स्वरचित संकीर्तनों की व्याख्या करते हैं। ये बहुत आकर्षक व्याख्याएँ हैं, जिनमें रस (भक्तियोगरसावतार) एवं उपदेश (जगद्गुरूत्तम) का कृपामय सामंजस्य है।
यह वीडियो 'युगल रस' नामक काव्य संग्रह के एक रसमय संकीर्तन
'मैं तो लुटि गई लुटि गई हाय दैया।'
की व्याख्या
(मनगढ़ साधना, दिनांक : 12.10.2000)
पर आधारित है, जिसकी माधुरी का पान करते-करते सहज ही परमोत्कृष्ट उपदेश साधक के अंतर्मन में उतर जाता है।
इस वीडियो के कुछ अंश हैं—
"सखी!
जब मैंनें उसकी ओर देखा
तो उसने भी मुझको देखा।
अरे, वो तो देख ही रहा है,
बुला ही रहा है, देखेगा ही।
इस देखा-देखी में देखते देखते
और पता नहीं कैसे देखा कि सब कुछ लुट गया। देखते-देखते लुट गया।
कोई सामान चुराता है तो उसका तरीका होता है।
कोई तरीका-वरीका नहीं।
देखा और बस सब कुछ लूट ले गया।
बड़े-बड़े खजाने हमारे पास थे।
अनन्त कोटि जन्मों के पाप।
लूट ले गया।
…पाप जो है वो बड़े परिश्रम से कमाया जाता है।
और वो भी दो-चार दस हज़ार,
बीस करोड़ पाप नहीं, अनलिमिटेड।
क्योंकि हमारे जन्म अनन्त हो चुके।
अगर एक जन्म में हमने एक झूठ भी बोला होगा
तो अनन्त झूठ का ही पाप भरा है हमारे साथ।
वो भी चुरा ले गया।
अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, पापाचार
सब लूट के ले गया।"
—जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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कलियुग में दान को ही कल्याण का एकमात्र माध्यम बताया गया है। 'दानमेकं कलौयुगे'।
दान पात्र के अनुसार ही अपना फल देता है तथा भगवान एवं महापुरुष के निमित्त किया गया दान सर्वोत्कृष्ट फल प्रदान करता है।
हम साधारण जीव यथार्थ में यह नहीं जान सकते कि वास्तविक महापुरुष के प्रति किया गया हमारा दान/समर्पण हमारे कल्याण का कैसा अद्भुत द्वार खोल देगा। अतएव, समर्पण हेतु आगे बढिये।
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