सदगुरू कबीर साहेब की महत्ता
कबीर वाणी सत्संग
बीजक कथा रमैनी छः
आध्यात्मिक जीवन में मनुष्य की असली अनभूति
अपने चेतन स्वरूप को छोड़कर जो अलग से ब्रम्ह खोजता है उनसे सदगुरू पूछते हैं कि तुम्हारे मानें हुए ब्रम्ह के क्या रूप और लक्षण हैं
यदि उसका कोई भाई लक्षण है तो वह भौतिक है और यदि वह चेतन मात्र है तो तो मेरे अपने स्वरूप से भिन्न नहीं यदि भिन्न है तो सजाती मात्र है ऐसी दशा में मेरी स्थिति मेरे अपने चेतन स्वरूप में ही होगी ना कि अन्य सजाती चेतन में
जिन्हें नित्य विद्यमान सत्ता के दो मूल तत्व और चेतन के मूल स्वरूपों का विवेक नहीं है और जो किसी ब्रह्मा द्वारा अवर्तमान से जगत का प्रादुर्भाव मानते हैं वह संसार के सारे लोग यही कहते हैं कि पहले चांद सूर्य नक्षत्र पृथ्वी जल अग्नि वायु आदि नहीं थे किसी दिन शुद्ध ब्रह्मा ने स्फूर्णा की और इन असंख्य विशाल ब्रह्मांड को तुरंत े खड़ा कर दिया जगत को समझने की मनुष्य की बहुत बड़ी कमजोरी है