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साई बाबा पृथ्वी की ओर चल पड़ते हैं। साई बाबा के जनम और उनकी माता के बारे में और उनके गुरु के बारे में कोई भी नहीं जनता था लेकिन उन्हें पहली बार एक निम के पेड़ के नीचे बैठा देखा था। वन में गाय और बकरियाँ उन्हें देख कर उनकी ओर जाती हैं और उनकी परिक्रमा करने लगती हैं जिसे देख चरवाहे हैरान हो जाते हैं और गाँव में जाकर उनके बारे में बताते हैं। पाटिल जी को जब यह सुनाई देता है की एक संत वन में बैठे हैं तो वो अपनी पत्नी बायजा को बताते हैं। कोई उन्हें अल्लाह का फ़रिश्ता कहता है तो कोई उन्हें साधु संत सभी उनके दर्शन करने के लिए जाते हैं। खंडोबा मंदिर के पुजारी महालसापति को भी जब यह पता चलता है की वन में चमत्कारी संत आए हैं तो वो भी उनके दर्शन को जाता है। सभी उनके दर्शन पाकर प्रसन्न हो जाते हैं। तभी वहाँ बारिश आ जाती है तो सभी वहाँ से बारिश से बचने के लिए भागते हैं लेकिन बायजा साई बाबा को अपने बेटी की तरह माँ लेती हैं तो वो उस पर अपने पल्लू से बारिश को रोकती है। पाटिल जी साई बाबा के लिए छप्पर लाने के लिए कहते हैं तो संतु गाँव के वैद्य कुलकरनी की गाय के छप्पर को उठा लता है जिसे देख कर कुलकरनी क्रोधित हो जाता है और वहाँ आता है और साई को बुरा भला बता कर अपनी छप्पर लेकर जाने की बात करता है लेकिन ले जा नहीं पाता। गाँव में साई बाबा के बारे में सभी लोगों के अलग अलग विचार थे कोई उन्हें ढोंगी कहते है तो कोई सच्चा साधु। कुलकरनी साई बाबा को ढोंगी और धोखेबाज़ बताता है। महालसापति और पाटिल साई बाबा के बारे में कहते हैं की वो चमत्कारी संत हैं। कुलकरनी के साथी उसे कहते हैं की हमें रात में ही उस धोखेबाज को गाँव से बाहर फेंक देना चाहिए। रात में साई बाबा के बारे में बायजा सोचती है।बायजा साई बाबा को योग में बैठा देख उसकी चिंता करते हैं की उसने कुछ खाया भी है या नहीं। बायजा साई के लिए भोजन बना कर ले जाती है। रास्ते में एक भिखारी भीख माँगता है जिसे कोड़ लगा हुआ था बच्चे उसे पत्थर मार रहे थे की तभी वहाँ बायजा आ जाती है और उसे बचा लेती है। बायजा उसे खाना दे देती है। बायजा वापस अपने घर खाना बनाने आती है तो नूर उसे कहती है की तुम साई के लिए भोजन मेरे यहाँ बना लो मैंने सारी तैयारी की हुई है। नूर और बायजा खाना बना कर अपने साथ साई के पास ले आती है और उनके पास भोजन रोक कर चली आती है। बायजा को जब पता चलता है की साई ने भोजन नहीं किया और गाय बकरी और कुत्ते वो भोजन खा रहे हैं और संत तो योग में बैठे हैं तो बायजा अगले दिन साई के लिए भोजन लेकर जाती है और ज़िद्द करके बैठ जाती हैं की जब तक साई भोजन नहीं करेगा तब तक वो भी नहीं खाएगी। बायजा के भोजन त्यागने की बात गाँव में फैल जाती हैं। पाटिल जी भी बायजा को देख कर भोजन करने से मना कर देते हैं। एक दिन बायजा को कुएँ पर पानी भरते हुए कमजोरी के कारण चक्कर आ जाते हैं। पाटिल जी बायजा की हालत को देख कर योगी के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं की वो अपनी आँखें खोले और भोजन करे वरना वो अपना सिर पटक पटक कर अपने प्राण त्याग देगा। साई बाबा अपनी आँखें खोल देते हैं और बायजा को माँ कहकर भोजन खिलाने को कहते हैं तो बायजा बेहोशी से जाग जाती है। बायजा साई सटि है की तुमने भोजन क्यों नहीं खाया तो साई उन्हें कहते हैं की उन्होंने भोजन कर लिया है जब आपने भिखारी को भोजन खिलाया और जानवरों ने जो भोजन खाया वो सब मुझे प्राप्त हो गया था। साई बायजा को अपने हाथों से भोजन कराते हैं। सभी को हैरानी होती है की साई को कैसे मालूम की बायजा ने भोजन को भिखारी को खिला दिया था।
Music And Lyrics - Ravinder Jain
Associate Director - Mayur Vaishnav, Madan Sinha
Co-Producer - Subhash Sagar, Prem Sagar, Jyoti Sagar
Co-Director - Anand Sagar, Moti Sagar
Writer - Ramanand Sagar
Producer - Ramanand Sagar
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