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उपनिषद ब्रह्म के ज्ञान जो परम सत्य है का अर्थ और महत्व बताता है।#viralvideo#sanatani#yodhaa#support

sanatani yoddha 4,531 3 days ago
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यह उपनिषद न केवल आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान की चर्चा करता है, बल्कि ध्यान, योग और आत्मबोध की सीढ़ियों को भी विस्तार से बताता है। ब्रह्म-विद्योपनिषद् एक महत्वपूर्ण उपनिषद है जो अथर्ववेद से सम्बद्ध माना जाता है। यह उपनिषद मुख्यतः ब्रह्मविद्या, अर्थात ब्रह्म (परमसत्य) के साक्षात्कार हेतु आवश्यक ज्ञान और साधना पर केंद्रित है। इसमें कुल 112 श्लोक हैं, जिन्हें गुरु-शिष्य संवाद की शैली में प्रस्तुत किया गया है, जो प्राचीन भारतीय गुरुकुल परंपरा की झलक देता है। इस उपनिषद में ब्रह्म को केवल एक दर्शन या तात्त्विक सत्य नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव करने योग्य सत्य बताया गया है। यह उपनिषद वेदांत के सिद्धांतों और योग की साधनाओं को एकसूत्र में पिरोता है। जहां वेदांत आत्मा और ब्रह्म की एकता पर बल देता है, वहीं योग ध्यान, संयम और आत्मनिष्ठा के द्वारा उस अनुभव तक पहुँचने का साधन प्रस्तुत करता है। ब्रह्म-विद्योपनिषद् यह स्पष्ट करता है कि केवल शास्त्रज्ञान से ब्रह्म की अनुभूति नहीं हो सकती, जब तक कि साधक स्वयं ध्यान, वैराग्य और आत्मचिंतन के द्वारा अंतर्मुख नहीं होता। इस उपनिषद में आत्मा के स्वरूप, ब्रह्म की प्रकृति, मन की एकाग्रता, और ध्यान की महत्ता पर गहन प्रकाश डाला गया है। "भगवन्! कृपया मुझे उस ब्रह्मविद्या का उपदेश दीजिए जो जीव को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर सके, जिससे परम शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके। यह प्रश्न केवल बौद्धिक जिज्ञासा नहीं, बल्कि आत्मा की गहरी पुकार है जो संसार के दुखों, अस्थिरताओं और मरणशीलता से ऊपर उठकर अमरत्व को प्राप्त करना चाहती है। इसके उत्तर में भगवान बड़ी ही सूक्ष्मता से ब्रह्मविद्या का सार समझाते हैं और कहते हैं कि: श्रवण (श्रवण करना), मनन (उस पर विचार करना), और निदिध्यासन (गंभीर ध्यान करना) के द्वारा ही ब्रह्म का साक्षात्कार संभव है।" इसका अर्थ यह है कि पहले किसी योग्य गुरु से ब्रह्मतत्त्व के बारे में सुनना चाहिए (श्रवण), फिर उस सुनी हुई बात पर अपने तर्क और बुद्धि से गहराई से चिंतन करना चाहिए (मनन), और अंत में उस पर दृढ़ता से ध्यान लगाकर अपने चित्त में उसे आत्मसात करना चाहिए (निदिध्यासन)। भगवान यह भी स्पष्ट करते हैं कि केवल पठन-पाठन या चर्चा से ब्रह्म नहीं जाना जा सकता; जब तक साधक स्वयं अपने चित्त को एकाग्र कर उस सत्य में स्थित नहीं होता, तब तक ब्रह्म का अनुभव नहीं होता। यह उपदेश वास्तव में हर साधक के लिए एक दिशासूचक है जो आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर होना चाहता है। #viralvideo #trending #upnishad #subscribe #support #likeforlikes #videos #upnishad #hindumantra #sanatandharma #sanatani #yoddha #video #subscribe #like #upnishad ब्रह्म-विद्या उपनिषद् के मुख्य बिंदु: ब्रह्म का ज्ञान: उपनिषद ब्रह्म के ज्ञान, जो परम सत्य है, का अर्थ और महत्व बताता है।  ॐ: उपनिषद ॐ प्रतीक की संरचना, उच्चारण, स्थिति, और महत्व पर चर्चा करता है।  आत्म-ज्ञान: उपनिषद आत्म-ज्ञान, यानी आत्म-चेतना की प्रकृति पर चर्चा करता है।  मुक्ति: उपनिषद मानवीय आसक्ति और उससे मुक्ति के बारे में भी बताता है।  ब्रह्म-विद्या का अर्थ: "ब्रह्मविद्या" का अर्थ है "ब्रह्म का ज्ञान।" ब्रह्म परम सत्य का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि विद्या का अर्थ है ज्ञान। ब्रह्मविद्या, जैसा कि उपनिषदों में बताया गया है, साधक को अपने भीतर सत्य को खोजने के लिए मार्गदर्शन करती है। "तो दोस्तों, यह थी ब्रह्म-विद्या उपनिषद् की संक्षिप्त लेकिन गहराई से भरी यात्रा। अगर आपको यह वीडियो ज्ञानवर्धक लगा हो, तो कृपया इसे 👉🏻 लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल को 👉🏻 सब्सक्राइब करना न भूलें। अगली बार हम फिर मिलेंगे एक और उपनिषद् के ज्ञान के साथ। ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"

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