माउंट एवरेस्ट की उंचाई पता लगने से करीब तीन दशक पहले, साल 1820 में नंदा देवी की उंचाई नापी जा चुकी थी. तब इसे ही दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत माना गया. नंदा देवी के नाम ये सम्मान तब तक बना रहा, जब तक 1930 में कंचनगंगा की उंचाई का ठीक ठाक अनुमान नहीं लग गया. फिर इसके करीब दो दशक बाद, साल 1852 में गणितज्ञ राधाकांत सिकदर ने सागरमाथा या चोमोलंगम की सटीक उंचाई का पता लगाया तो पूरा परिदृश्य ही बदल गया. राधाकांत सिकदर ने ग्रेट हिमालय में मौजूद जिस चोटी की सटीक गणना कर उसकी उंचाई निकाली थी, वो दुनिया का सबसे उंचा पर्वत घोषित हुआ और उसका नाम रखा गया Mt. Everest. अब इसे विडबंना ही कहेंगे कि भारतीय मूल के राधाकांत सिकदर का नाम पूरी तरह से ग़ायब हो गया और पर्वत का नाम उस अंग्रेज अधिकारी के नाम पर रखा गया जिसने प्रत्यक्ष रूप से इस पर्वत को कभी देखा ही नहीं था. बहरहाल, इसके महज दो साल बाद ही माउंट के-वन और के-टू की उंचाई का भी पता लगा लिया गया. इस तरह से तकरीबन तीस साल पहले जो नंदा देवी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी मानी गई थी, वो 1855 तक दुनिया में 23 वें नंबर पर खिसक गई. लेकिन एक रिकॉर्ड फिर भी उसके नाम था. ये था उसकी चोटी को फ़तह करने की कठिनाई का जिसने कई पर्वतारोहियों की जान ले ली थी. नंदा देवी पर्वत की चोटी पर पहुंचना तो दूर, उसकी तलहटी तक पहुंचने में ही दशकों बीत गये. एक के बाद एक कई अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोहियों ने इस पर्वत की महज घाटी तक पहुंचने के आठ असफल प्रयास किए. ये पर्वत एकमात्र ऐसी चुनौती थी, जिसके सामने दुनिया भर के माउंटेनियर्स हथियार डाल चुके थे.
जियोग्राफी की बुनियादी समझ रखने वाले भी जानते हैं कि किसी भी पर्वत की चोटी तक पहुंचने से पहले एक घाटी होती है. यहीं पर उस पर्वत का पहला बेस-कैंप भी बनाया जाता है जहां से पर्वतारोही पर्वत की कठिन चढ़ाई चढ़ने से पहले की तमाम तैयारी करते हैं. पहले बेस-कैंप के बाद उस पर्वत की चोटी तक कई बैस-कैंप हो सकते हैं. जैसे माउंट एवरेस्ट के कुल चार बेस-कैमप्स में सबसे पहला काला पत्थर लगभग 4500 मीटर की उंचाई पर है. इसी तरह दुनिया के दूसरे सबसे ऊँचे पर्वत माउंट के-2 पर आरोहण करने के लिए लिए पांच बेस-कैंप हैं. अमूमन, पहले बेस-कैंप तक कोई भी सामान्य इंसान कुछ दिनों की आसान ट्रेकिंग कर पहुंच सकता है. लेकिन, हम आज जिस पर्वत की बात कर रहे हैं, उसकी घाटी तक पहुंचना ही उस वक्त की बड़ी सफलता थी. बल्कि आज भी इसे फ़तह करना तो पूरी दुनिया के लिए सबसे कठिन और जानलेवा है. अभी चार साल पहले यानी साल 2019 में भी इस पर्वत पर चढ़ने के दौरान आठ पर्वतारोहियों की दर्दनाक मौत हो गई थी.
नंदा देवी पर्वत केवल एक पहाड़ भर नहीं है. हिंदू धर्म के अन्य भगवान या देवताओं से अलग नंदा देवी को उत्तराखंड में कहीं बेटी माना जाता है, कहीं बहन तो कहीं मां. किसी आराध्य के साथ आम जनमानस का ऐसा अनूठा रिश्ता उत्तराखंड में ही मिलता है. आज हम नंदा देवी की न केवल भौगोलिक विषमता की बात करेंगे, बल्कि उसके धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को भी टटोलेंगे. हम इस पर भी चर्चा करेंगे कि आखिर क्या वजह है कि नंदा देवी को सिर्फ़ उत्तराखंड में ही पूजा जाता है. कत्यूरियों से लेकर कुमाऊँ के चंद वंश और गढ़वाल के पंवार वंश तक में आखिर नंदा ही क्यों आराध्य रही, जिसके चलते उन्हें राज-राजेश्वरी भी कहा गया. हम इस पहलू पर भी बात करेंगे कि आखिर क्यों शिव की तीन अर्धांगिनियों में सिर्फ़ नंदा ही वैष्णव थीं जबकि सती और पार्वती शैव समुदाय से थीं. टटोलेंगे उन कारणों को भी कि आखिर नंदा देवी की पूजा पद्धति तिब्बत के देवताओं से कैसे मिलती है और बात करेंगे उस अभियान की भी जिसमें अमेरिकन ख़ुफ़िया एजेंसी CIA ने नंदा पर्वत पर एक महत्वाकांक्षी प्रयोग करना चाहा जो सफल तो नहीं हो सका लेकिन जिसके अवशेष आज भी वहां दफ़्न हैं.
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