मैथिली संस्कृति में सोहर एक पारंपरिक लोकगीत है, जिसे विशेष रूप से बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है। यह गीत माँ और नवजात शिशु के सुख-समृद्धि की कामना के साथ-साथ जन्म से जुड़े रीति-रिवाजों, पारिवारिक उल्लास, और समाज की भावनाओं को व्यक्त करता है।
मैथिली सोहर के प्रमुख विशेषताएँ
1. शुभ अवसर पर गायन – सोहर गीत खासकर पुत्र या पुत्री जन्म के समय गाया जाता है।
2. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व – इसमें देवी-देवताओं का आह्वान होता है, विशेष रूप से गौरी माता, दुर्गा, लक्ष्मी, और शिव जैसे देवताओं की स्तुति की जाती है।
3. लोकधुन और सरल भाषा – सोहर गीतों की धुनें मधुर होती हैं और इनकी भाषा आम बोलचाल वाली मैथिली होती है।
4. नाटकीयता और हास्य – कई सोहर गीतों में हास्य भी होता है, जैसे दाई (दाई माँ/दाईन) और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच के संवाद।
5. सामूहिक गायन – यह गीत महिलाओं का समूह मिलकर गाता है, जिससे माहौल उल्लासमय हो जाता है।
प्रसिद्ध मैथिली सोहर गीत के उदाहरण
1. "गौरी गौरी गीत" – माँ गौरी से प्रार्थना की जाती है कि वे बालक को दीर्घायु और सुख-समृद्धि प्रदान करें।
2. "जन्मल बेटा, सोनवा के खजाना" – पुत्र जन्म की खुशी को व्यक्त करता है।
3. "नवकी बहुरिया सुनू" – नवजात की माँ को परामर्श और आशीर्वाद देने वाला गीत।
मैथिली संस्कृति में सोहर का महत्व
सोहर केवल गीत नहीं, बल्कि समाज में सामूहिक सौहार्द और पारिवारिक प्रेम को दर्शाने का माध्यम है। यह लोकसंस्कृति की समृद्ध धरोहर है, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता है।
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