सुनहु साधक प्यारे'
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा
स्वरचित काव्य रचना की व्याख्या।
दिनांक 18 नवम्बर, 2002 (मनगढ़).
श्री महाराज जी के शब्दों में,
"भगवान और महापुरुष माया से कोई कार्य नहीं करते। वो योगमाया से करते हैं। योगमाया माने भगवान की एक पर्सनल पॉवर है, सबसे बड़ी, कि योग रहे अपनी पर्सनालिटी में और माया का कार्य करे। वो योगमाया है।
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जिसका नाम ले रहे हैं, उसका स्मरण होना चाहिये। ये प्रमुख बात है। सबसे प्रमुख! सबसे प्रमुख!! रट लो। भगवत्प्राप्ति तक ये वाक्य भूले ना। ये मन को भक्ति करना है। इसलिये भगवान के स्मरण के अलावा कोई भी भक्ति ज़ीरो बटे सौ।"