परखत खर परखावत खोटी | कबीर उलटवासी के मर्म | धर्मराज के साथ | आरण्यक
परखत खर परखावत खोटी
बढ़वत बाढ़ि बढ़ावत छोटी
परखत खर परखावत खोटी
केतिक कहौं कहाँ लौ कही
औरों कहौं परै जो सही
कहे बिना मोहि रह्यो न जाई
बेरहिं लै लै कूकुर खाई
खातै खातै युग गया
अजहुँ न चेतो जाय
कहहिं कबीर पुकारि के
जीव अचेते जाय