हर व्यक्ति अलग अलग समुदायों से क्यों जुड़ा होता है। ऐसा क्यों है कि सब लोग एक ही दिशा में नहीं चलते सब अलग- अलग दिशा में चलते हैं यां लाख लोगों का ग्रुप एक समुदाय में है करोड लोगों का ग्रुप दूसरे समुदाय में है तो हर व्यक्ति अलग-अलग समुदायों से क्यों जुड़ा होता है चाहे वो राजनीतिक हो चाहे धार्मिक हो जा धार्मिक नहीं हो जितने भी समुदाय हमारी पिछले संस्कारों और मौजूदा संस्कारों का एक पिरोंदा होता है। उस पिरोंदे के अनुरूप हमारे अंदर एक वाइब्रेशन क्रिएट होती है जिसको संतों ने शब्द कहा है क्योंकि वाइब्रेशन ही शब्द होते हैं और हम भी उसी शब्द की देन है यह जो हमारा शरीर बना है हमारे मां-बाप के वाइब्रेशनस की वजह से,हमें लगता है कि उन्होंने शरीर की क्रिया की है आपस में भोग करके हमें उत्पन्न किया है लेकिन नहीं ,यह सब वाइब्रेशन की वजह से हुए जवाब गहराई में जाओगे सूक्ष्मता में जाओगे तो सारे संसार में सारा खेल वाइब्रेशनस का चल रहा है। तो आपके पिछले संस्कार मौजूदा संस्कार इसका जो पेड़ होता है इसका जो कंप्लीट रिजल्टेंट है उस रिजल्टेंट से आपकी जिंदगी तय होती है आप की सहमति तय होती है,आपकी असहमति तय होती है, तो सहमति और असहमति के पार है परमात्मा क्योंकि सारा खेल वाइब्रेशंस का है। जब आपको परमात्मा शुरू में मिलता है तो अबोल गुरु के रूप में मिलता है। अबोल गुरु का मतलब वो आप में कृपा से पहले जो मौजूदा संस्कार हैं, ज्ञान है, वाइब्रेशन का जो पिरोंदा है बन चुका है उसको तोड़ता है वो एक कृपा के माध्यम से कोई दैहिक गुरु नहीं आता।#Akah anam Punjab
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