जालिम"एक पिछड़े गांव की कहानी जहां पर एक जालिम इंसान की हुकूमत चलती थी। suvichar l crime story
#emotionalkahani #motivationkahani #motivation #hearttouchingstoryhindi #suvicharkahani #hearttuchingstory #crimekikahani #crimestory
उत्तर प्रदेश के बदायूं, शाहजहांपुर और फर्रुखा
बाद जिलों की सीमाओं को छूता, रामगंगा नदी
के किनारे पर बसा हुआ गांव पिरथीपुर यों तो
बदायूं जिले का अंग है, पर जिले तक इस की
पहुंच उतनी ही मुश्किल है, जितनी मुश्किल
शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिला हैडक्वार्टर
तक की है.
कभी इस गांव की दक्षिण दिशा में बहने वाली
रामगंगा ने जब साल 1917 में कटान किया
और नदी की धार पिरथीपुर के उत्तर जा पहुंची
, तो पिरथीपुर बदायूं जिले से पूरी तरह कट
गया. गांव के लोगों द्वारा नदी पार करने के लिए
गांव के पूरब और पश्चिम में 10-10 कोस तक
कोई पुल नहीं था, इसलिए उन की दुनिया
पिरथीपुर और आसपास के गांवों तक ही
सिमटी थी, जिस में 3 किलोमीटर पर एक
प्राइमरी स्कूल, 5 किलोमीटर पर एक पुलिस
चौकी और हफ्ते में 2 दिन लगने वाला बाजार
था.
सड़क, बिजली और अस्पताल पिरथीपुर वालों
के लिए दूसरी दुनिया के शब्द थे. सरकारी
अमला भी इस गांव में सालों तक नहीं आता था.
देश और प्रदेश में चाहे जिस राजनीतिक पार्टी
की सरकार हो, पर पिरथीपुर में तो समरथ सिंह
का ही राज चलता था. आम चुनाव के दिनों में
राजनीतिक पार्टियों के जो नुमाइंदे पिरथीपुर
गांव तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते थे, वे
भी समरथ सिंह को ही अपनी पार्टी का झंडा
दे कर और वोट दिलाने की अपील कर के लौट
जाते थे, क्योंकि वे जानते थे कि पूरे गांव के
वोट उसी को मिलेंगे, जिस की ओर ठाकुर
समरथ सिंह इशारा कर देंगे.
पिरथीपुर गांव की ज्यादातर जमीन रेतीली और
कम उपजाऊ थी. समरथ सिंह ने उपजाऊ
जमीनें चकबंदी में अपने नाम करवा ली थीं. जो
कम उपजाऊ जमीन दूसरे गांव वालों के नाम
थी, उस का भी ज्यादातर भाग समरथ सिंह के
पास गिरवी रखा था.
समरथ सिंह के पास साहूकारी का लाइसैंस था
और गांव का कोई बाशिंदा ऐसा नहीं था, जिस
ने सारे कागजात पर अपने दस्तखत कर के या
अंगूठा लगा कर समरथ सिंह के हवाले न कर
दिया हो. इस तरह सभी गांव वालों की गरदनें
समरथ सिंह के मजबूत हाथों में थीं.
पिरथीपुर गांव में समरथ सिंह से आंख मिला
कर बात करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी.
पासपड़ोस के ज्यादातर लोग भी समरथ सिंह
के ही कर्जदार थे.
समरथ सिंह की पहुंच शासन तक थी. क्षेत्र के
विधायक और सांसद से ले कर उपजिलाधिकारी
तक पहुंच रखने वाले समरथ सिंह के खिलाफ
जाने की हिम्मत पुलिस वाले भी नहीं करते थे.
समरथ सिंह के 3 बेटे थे. तीनों बेटों की शादी
कर के उन्हें 10-10 एकड़ जमीन और रहने
लायक अलग मकान दे कर समरथ सिंह ने
उन्हें अपने राजपाट से दूर कर दिया था. उन की
अपनी कोठी में पत्नी सीता देवी और बेटी
गरिमा रहते थे.
गरिमा समरथ सिंह की आखिरी औलाद थी. वह
अपने पिता की बहुत दुलारी थी. पूरे पिरथीपुर
में ठाकुर समरथ सिंह से कोई बेखौफ था, तो
वह गरिमा ही थी.
सीता देवी को समरथ सिंह ने उन के बैडरूम
से ले कर रसोईघर तक सिमटा दिया था. घर में
उन का दखल भी रसोई और बेटी तक ही था.
इस के आगे की बात करना तो दूर, सोचना
भी उन के लिए बैन था.