कुटज | लेखक - हजारी प्रसाद द्विवेदी
कुटज
लेखक - हजारी प्रसाद द्विवेदी
कुटज
कहते हैं, पर्वत शोभा - निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या ! पूर्व और अपर समुद्र - महोदधि और रत्नाकार- दोनों को दोनों भुजाओं से थाहता हुआ हिमालय 'पृथ्वी का मानदंड ' कहा जाए तो गलत क्या है ?