जागृति पाई है तो उसे जगत में फैलाना होगा || Shri Mataji Speech
यह वीडियो में श्री माताजी ने हमें बताइए की आपके सवाल ठीक हो जायेंगे, आपकी तंदुरुस्ती ठीक हो जायेगी, आपकी मानसिक दशा ठीक हो जायेगी, आपके बच्चे ठीक हो जायेंगे, आपकी फाइनॅन्शिअल कंडिशन (आर्थिक स्तिथि ) ठीक हो जायेगी, सब ठीक हो जायेगा। आप भगवान के लिये क्या दे रहे हैं? अरे कुछ देने का नहीं है। लेने का है। आप कहाँ तक ले रहे हैं उस से। ये सवाल आप से पूछे कि, ‘हमने सब ले लिया। कितना माँ दे रही हैं, उसमें से कितना हम ने ले लिया है? क्या पूरा के पूरा ले लिया।’ सब कुछ क्या पा लिया ? अपना रास्ता भटक भटक के हम कहाँ चले जाते हैं। क्यों न हम इसे पा लें! संसार की चीज़ें तो चलती ही रहती हैं। उसमें रखा क्या है? कोई मिलने आया, कोई चला गया, कोई कुछ हुआ। इसमें रखा क्या है? हमने कितना पाया है? एक एक इन्सान एक एक इन्स्टिट्यूशन (संस्था) है, मैंने कहा था। एक एक इन्सान एक एक संस्था है।
सब कुछ वो करता है। अगर आपको सोचना ही है तो ये सोचना है कि ‘क्या मेरा दीपक इस योग्य है! मैंने कहाँ रखा है मेरा दीपक।’ दीपक जला कर के, आप क्या टेबल के नीचे रखियेगा ? ये कौनसा तरीका है? इसका मापदण्ड अपनी ओर ले लेना चाहिये। इसको सोच लेना चाहिये, कि हमने अपनी मानवता कहाँ तक जगायी? उसको कितना हमने मैनिफेस्ट (प्रकट) किया है? कितना हमारे मानवता का प्रकाश फैला है? दुनिया क्या कहती है हमारे लिये?
आप लोग मुझे मानते हैं न माँ और गुरु भी मानते हैं। ठीक है। मेरे जीवन की ओर भी तो दृष्टि करनी चाहिये। सोचो, हजारों वर्षों की तपस्या के बाद हम मनुष्य हुए हैं। हजारों वर्षों के बाद। और मनुष्यता के नाते आने पर समझा की मनुष्य क्या होता है? लेकिन तो भी मैं अभी नहीं समझ पाती हूँ, कि अमूल्य रतन हीरा मिलने पर भी मनुष्य उस की कीमत क्यों नहीं करता है? मुझे बहुत ही कठिनाई होती हैं। बिल्कुल लापरवाही से (कैज्यूअली) आदमी रहता हैं इस मामले में। सोचता है, कि क्या चले जायेंगे, हो जायेगा, कर लेंगे। कारण ये है कि हीरे का मूल्य बाज़ार में जा के पूछ सकते हैं। इस के लिये कोई बाज़ार नहीं । इसका बाज़ार आप ही का मन, आप ही का हृदय, आप ही का संतोष, आप ही का विचार। सब कुछ आप ही के अन्दर, आप ही के संतोष की बात है। अपने में ही आप खेलते हैं, अपने में ही आप जागते हैं, अपने में ही आप रहते हैं, अपने में ही आप मज़ा लेते हैं और इतने सारे जो अपने हैं उनके साथ आप रचते हैं। उन्हीं के अन्दर बिराजते हैं। एक आदमी कहता है कि देखो, ये सहजयोगी है हमारे यहाँ।
Reference : 1977-1228 ( Part 2 ) || Divine Sahajyog
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