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वीडियो जानकारी: 8.11.23 , वेदांत संहिता , ग्रेटर नॉएडा
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने आत्मज्ञान, दुख, और बाहरी दुनिया के साथ हमारे संबंधों पर गहन विचार किया है। उन्होंने बताया कि मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वह बाहरी चीजों की तलाश करता है, जबकि असली समाधान भीतर ही है। आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि बाहरी दुनिया केवल हमारे आंतरिक अनुभवों का प्रतिबिंब है।
आचार्य जी ने यह भी बताया कि लोग अक्सर अपने दुखों का कारण बाहरी परिस्थितियों में खोजते हैं, जबकि असली कारण उनकी आंतरिक स्थिति होती है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे एक व्यक्ति अपनी बीमारी का इलाज खोजने के लिए बाहर जाता है, जबकि असली समस्या उसके भीतर होती है।
इसके अलावा, आचार्य जी ने यह भी कहा कि ज्ञान का वास्तविक अर्थ तब समझ में आता है जब हम अपने भीतर की स्थिति को पहचानते हैं। उन्होंने यह सुझाव दिया कि हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वही हमारे वास्तविक अनुभवों को दर्शाते हैं।
आचार्य जी ने अंत में यह कहा कि वेदांत का उद्देश्य मानव के कल्याण और मुक्ति पर केंद्रित है, और यह हमें हमारी जिम्मेदारी को समझने में मदद करता है।
प्रसंग:
कोऽसौ कालो वयः किं वा यत्र द्वन्द्वानि नो नृणाम्।
तान्युपेक्ष्य यथाप्राप्तवर्ती सिद्धिमवाप्नु यात् ।।
~ अष्टावक्र गीता - 9.4
~ दर्शन और नीति शास्त्र के अंतर को कैसे पहचानें?
~ आंतरिकता किसे कहते हैं?
~ भीतर की दुर्बलता को कैसे हटाएं?
~ देखने और खोजने में क्या अंतर होता है?
~ सुख का क्षण हम किसे मानते हैं?
~ दुनिया में दो तरह के कौन से लोग होते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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