श्री कृष्ण को इंद्र देव के अहंकार को तोड़ना था तो उन्होंने गोकुल में इंद्र देव के यज्ञ और पूजन के स्थान पर गोवर्धन पर्वत और गाय माता की पूजा अर्चना करने के लिए गोकुल वासियों को कहा जिसे सभी ने मां लिया और गोवर्धन पर्वत और गाय माता की पूजा शुरू कर दी यह सब देख कर इंद्र देव को गोकुल वासियों पर क्रोध आ जाता है और वो अपने मेघों के नायक को गोकुल वासियों पर क़हर बरसाने के लिए भेजते हैं। गोकुल में बहुत तेज तूफ़ान और बारिश होती है जी से गोकुल में बहुत नुक़सान होता है कान्हा सभी गोकुल वासियों को अपने साथ अपनी गाएँ लेकर गोवर्धन पर्वत की ओर आने को कहते हैं। कान्हा गोवर्धन पर्वत को अपनी उँगली पर उठा लेते हैं और सभी गोकुल वासी अपनी पशुओं के साथ पर्वत के नीचे तूफ़ान और बारिश से बचने के लिए शरण ले लेते हैं। सभी गोकुल वासी कान्हा और गोवर्धन पर्वत की जय जयकार करते हैं। इंद्र देव स्वयं आकर गोवर्धन पर्वत पर घनघोर वर्षा करते हैं लेकिन वो गोकुल वासियों का कुछ बिगाड़ नहीं पाते। इंद्र देव का अहंकार टूट जाता है तो वो कान्हा की शरण में आते हैं। सभी तूफ़ान के रुक जाने के बाद वापस लौट आते हैं और देवी माया उनके दिमाग़ से गोवर्धन पर्वत को उठाने के वाक्य को मिटा देती हैं। इंद्र देव कान्हा से क्षमा माँगते हैं और गाय माता कान्हा को उनकी रक्षा करने के लिए धन्यवाद करती हैं। गोकुल के समीप एक यमुना जी की नदी में जल कुंड था जहां एक कालिया नाम का नाग आकार रहने लगता है जो उस कुंड में आने वाले सभी जीव जंतुओं को मार कर खा जाता था। श्री कृष्ण और उनके मित्र एक दिन उस कुंड के पास गेंद से खेल रहे थे की उनकी गेंद कुंड में गिर जाती है जिसे लेने के लिए कान्हा कुंड में कूद जाते हैं और वहाँ कालिया नाग की पत्नी कान्हा को देख कर उसे वापस जाने के लिए कहती हैं ताकि कालिया नाग के क़हर से वो बच सके। लेकिन कान्हा कालिया नाग से नहीं डरते और उसे कुंड छोड़कर जाने को कहते हैं। कालिया नाग कान्हा की एक नहीं सुनता और उनसे युद्ध करने लगता है कान्हा कालिया नाग को हरा देते हैं और उसके फ़न पर खड़े हो जाते हैं कालिया नाग कान्हा से क्षमा माँगता है और उनसे वादा करता है की वो उनके बताए स्थान पर चला जाएगा। कालिया नाग कान्हा को अपने फ़न पर बैठा कर बाहर लेकर जाता है। कान्हा बाहर आकर कालिया नाग के फ़न पर नृत्य करते हैं।
दुर्योधन को जयदरथ की मृत्युु से दुःख लगता है। दुर्योधन अपनी बहन दुशाला के बारे में सोच सोच कर चिंतित और दुःखी होता है। शकुनि दुर्योधन को सांत्वना देता है। श्री कृष्ण पांडवों को समझाते हैं की हमें आज की विजय से अधिक प्रसन्न नहीं होना चाहिए। द्रोणाचार्य जयदरथ की सुरक्षा ना कर पाने की वजह से कल के युद्ध में ना जाने कैसी रणनीति का प्रयोग करे वो हम पता लगानी होगी।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
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