श्री कृष्ण द्वारा युद्धिष्ठिर को सलाह दी जाती है की वह राजसु यज्ञ करे जिसके लिए उसे सभी राजाओं को आमंत्रित करना चाहिए जो राजा तुम्हारा साथ दे उसे न्योता भेजो संधि का और जो ना माने तो उसे युद्ध के लिए ललकारों। युद्धिष्ठिर यज्ञ के लिए मां जाता है और श्री कृष्ण को अग्रपूजा के लिए चुना जाता है जिस पर शिशुपाल श्री कृष्ण को बुरा भला कहता है और उनका अपमान करता है। श्री कृष्ण शिशुपाल की सौ ग़लतियों को माफ़ करने के लिए बाधित थे क्योंकि उन्होंने शिशुपाल की माता को वचन दिया था। इसलिए वो उसकी सौ ग़लतियों को माफ़ कर देते हैं और जैसे ही उसकी 100 ग़लतियाँ पूरी होती हैं श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र से उसका गला काट देते हैं। शिशुपाल के वध के बाद उसकी आत्मा श्री हरी के पार्षद जय प्रकट होते हैं। श्री हरी उसकी आत्मा को वैकुंठ भेज देते हैं। वैकुंठ जाते वक्त नारद मुनि जी जय को बताते हैं की आप श्राप से तीन जन्मों से आज मुक्त हुए हैं। जब जय उनसे पूछते हैं की ये सब कैसे हुआ तो नारद जी उन्हें उनकी कथा सुनते हैं। नारद जी पार्षद जय को उनकी तीन जन्मों की कथा सुनते हैं जिसमें नारद जी उन्हें बताते हैं की एक बार ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों को उन्होंने वैकुंठ में आने से रोक दिया था तो क्रोधित हो कर उन ब्रह्म कुमारों ने उन्हें श्राप दे दिया था। जय विजय दोनों पार्षद श्री हरी से प्रार्थना करते हैं की आप ही हमें हमारे जन्मों से मुक्त करे। जिसके कारण पहले जनम में दोनों पार्षद हरिणयाक्ष और हरिनयकश्यप के रूप में जन्मे जिन्हें विष्णु भगवान ने वाराह अवतार और नरसिंह अवतार ले मुक्ति दी थी। दूसरे जनम में दोनों का जनम रावण और कुम्भकर्ण के रूप में हुआ था। जिनका वध श्री राम द्वारा हुआ था। तीसरे जनम में तुम शिशुपाल के रूप में जन्मे थे इसीलिए प्रभु ने स्वयं तुम्हें मार कर मुक्त किया है। जय नारद जी से पूछते हैं की विजय कहाँ है तो नारद जी बताते हैं की विजय अभी दन्तवक्र के रूप में पृथ्वी लोक पर ही है कुछ समय बाद श्री कृष्ण उसका भी वध कर देंगे जब वह उनकी द्वारिका पर हमला करेगा।
श्री कृष्ण धारावाहिक की इस कथा में नर नारायण की कथा का वर्णन किया गया है जिसमें दिखाया गया है की सतयुग काल में नर नारायण ने हिमालय पर्वत शृंखला के एक पर्वत पर घोर साधना की थी जिस के कारण इंद्र का सिंहासन भी ढगमगा गया और इंद्र ने उनकी तपस्या को अपने सिंहासन के लिए ख़तरा समझ कर अपनी सभा की प्रमुख अप्सराओँ को नर नारायण को तपस्या को भंग करने के लिए भेज दिया। सभी अप्सराएँ नर नारायण को लुभाने की कोशिश करती हैं। नर नारायण उन सभी अप्सराओँ के अहंकार को तोड़ने के लिए उनके सामने अपनी जाँघ से उर्वशी को प्रकट कर देते हैं। नर नारायण उन अप्सराओं और उर्वशी के बीच नृत्य और संगीत की प्रतियोगिता करवाते हैं जिसे उर्वशी उन सभी अप्सराओं को हरा देती हैं। सभी अप्सराएँ नर नारायण से क्षमा माँगती हैं। नर नारायण उन्हें माफ़ कर देते हैं और उनसे कहते हैं की उर्वशी को भी साथ ले जाओ और इंद्र देव से कहो की हमें ऐसे प्रलोभन ना दे हमें उनके स्वर्ग और उनके सिंहासन का कोई लोभ नहीं हैं। यही नर नारायण द्वापरयुग में अर्जुन और श्री कृष्ण के रूप में जनम लेते हैं।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
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