सत्संग १७ : ज्ञान दीक्षा कार्यक्रम, इन्द्रियाँ, स्वयं, "नियम " और "नियमित”
सत्संग अवसर है सभी साधकों के लिए जहाँ आप स्वयं के आध्यात्मिक यात्रा और ज्ञानमार्ग से संबंधित प्रश्नों को पूछ सकते हैं।
१ ) सत्संग हर शनिवार रात ९-१० (भारतीय मानक समय) बजे होता है। आप टेलीग्राम एप पर @bodhivarta समूह से जुड़ सकते हैं सत्संग यहीं से संचालित होता है।
२) त्रिज्ञान के लिए आप यहाँ अपना नाम यहाँ पंजीकृत करवा सकते हैं https://gyanmarg.guru/3d/ या मुझे सीधे संदेश भेज सकते है टेलीग्राम पर @Turiyateet
आज के सत्संग में निम्न प्रश्नों पर चर्चा की गयी है।
-ज्ञान दीक्षा कार्यक्रम कैसे कर सकते है। क्या कंप्यूटर होना आवश्यक है या मोबाइल फ़ोन से किया जा सकता है।
-अपरोक्ष ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से होता है और इंद्रियां झूठ, असत्य ,अनित्य और अपूर्ण हैं । तो -इंद्रियों से जो ज्ञान होगा वह नित्य, सत और पूर्ण कैसे होगा ?
-इंद्रियों का अनुभव स्वयं का अनुभव होता है । तो क्या इंद्रियों को स्वयं संज्ञा दिया जा सकता है?
-क्या स्वयं का अनुभव कभी भी इंद्रियों के द्वारा संभव है? स्वयं अनुभवकर्ता है और इन्द्रियाँ कारण हैं ।
-"नियम " और "नियमित " का क्या अर्थ है? ये दोनों अलग क्यों है? और अनुभवकर्ता पर ये लागू क्यों नहीं होते? पर कोनसे कारण से ये अनुभव पर लागू होता है? क्या अस्थाई चीज नियमित हो सकता है?
-ये जो भी अनुभव होता हैं वो वास्तव मे वैसा नहीं है जैसा अनुभव होता हैं। बस हमें उतना ही अनुभव होता हैं जितनी हमारी इंद्रियों की क्षमताएं है। और पता नहीं कि जितना वो हमें अनुभव करा पा रही हैं उतना भी वास्तविक है या नहीं।
@bodhivarta
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