चीन जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में हर तीन में से लगभग एक शिपिंग कंटेनर या तो चीन जा रहा होता है या चीनी बंदरगाह से आ रहा होता है. हैम्बर्ग में दोनों देशों के संबंध इतने मजबूत हैं कि चीन सरकार के स्वामित्व वाली एक शिपिंग कंपनी ने इस टर्मिनल में हिस्सेदारी तक खरीद ली है.
यह कहानी बताती है कि कैसे जर्मनी ने चीन के साथ व्यापार करके अपनी अर्थव्यवस्था को खाद-पानी दिया और कैसे यह किसी भी पश्चिमी देश के मुकाबले चीनी हुकूमत के सबसे करीब पहुंचा. पर यहां पहुंचकर जर्मनी के सामने यही सवाल है कि क्या यह फैसला सही था. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरपरस्ती में चीन तानाशाही वाला देश बन गया है, जो पश्चिम की ताकत और मूल्यों को चुनौती दे रहा है. चीन न सिर्फ विकसित हो रहा है, बल्कि धीरे-धीरे निरंकुश शासन का प्रसार भी कर रहा है. यह लोकतंत्र में हमारे भरोसे और मानवाधिकारों के खिलाफ है. शासन-प्रणालियों के इस संघर्ष में अमेरिका पश्चिम को लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने के लिए लामबंद कर रहा है. यह इस सदी में निर्णायक साबित होगा. तमाम पक्ष चाहते हैं कि जर्मनी इसमें शामिल हो. जर्मनी की आम जनता से लेकर यूरोप के बाहर इसके प्रमुख सहयोगियों तक की ओर से जर्मनी पर एक सख्त भूमिका निभाने का दबाव पड़ने वाला है.
पर क्या जर्मनी वाकई चीन से टकराव में सब कुछ जोखिम में डालने को तैयार है? जर्मनी की नई सरकार के सामने एक दुविधा है. क्या इसे आर्थिक फायदा उठाते रहना चाहिए या इसे फिर से सोचने की जरूरत है? इस वीडियो में हम जानेंगे कि जर्मनी चीन के साथ इतना कैसे उलझ गया और कैसे बीते कुछ वर्षों में यह पता चला है कि जर्मनी का असल में किससे पाला पड़ा है. हम परखेंगे कि जर्मनी की कमान संभालने वाली नई टीम क्या नई शुरुआत करना चाहती है.
DWDocumentaryहिन्दी #DWहिन्दी #विश्व #अर्थव्यवस्था
------------------------------------------------
अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए.
विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: https://www.youtube.com/dwhindi
और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G