Prem Ras Madira Composed by Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj in the Voice of Ghanshyam Bhaiya.
Recorded in (Mangarh, 1980)
Prem Ras Madira - Virah Madhuri (193)
A brief translation provided Below:
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प्रेम रस मदिरा विरह माधुरी (१९३)
सखी! सुनु, समय होत बलवान
एक विरहिणी गोपी अपनी सखी से कहती है कि अरी सखी! समय बड़ा बलवान होता है
एक दिना हरि हमहिं मनावत, हौं बैठति करि मान
एक दिन वह था कि जब प्रियतम श्यामसुन्दर हमें मनाया करते थे एवं हम बार-बार मान किया करती थीं
आजु मनाव त प्राण जात पै, कान्ह करत नहिं कान
किन्तु आज मनाते -मनाते प्राण निकले जा रहे हैं, फिर भी श्यामसुन्दर हमारी पुकार नहीं सुनते
एक दिना हरि मोहिं बिन पल छिन, रहि न सकत थल आन
सखी! एक दिन वह था जब श्यामसुन्दर हमारे बिना एक क्षण भी दूसरी जगह नहीं रह सकते थे
आजु विकल हम पल पल तलफति, तजत न कुब्जा-ध्यान
किन्तु आज हम अत्यन्त व्याकुल होकर पल-पल तड़प रही हैं, फिर भी श्यामसुन्दर का कुब्जा में लगा हुआ मन नहीं छूट रहा है
एक दिना हरि हते खिलौना, सुनति छाछ दै तान
अरी सखी! एक दिन वह था जब श्यामसुन्दर हमारे खिलौना बने थे एवं हम जरा सी छाछ देकर मुरली की तान सुना करती थीं
आजु 'कृपालु' भये हरि दूभर, गूलर फूल समान ॥
किन्तु 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि आज वे ही श्यामसुन्दर हमारे लिए गूलर के फूल के समान दुर्लभ हो गये हैं॥
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