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सरवरिया ब्राह्मणों का पूर्ण परिचय, गोत्र व प्रवर || Complete Introduction about Sarvariya Brahmans

Reet Knowledge TV 19,823 3 years ago
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सरयूपारीण ब्राह्मण सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। ऋग्वेद मे सिर्फ़ तीन नदियो का उल्लेख ही है। इनमे सरस्वती, सिंधु और सरयू नदी का ज़िक्र है। कई लोगो का मानना है कि सरयूपारीण ब्राह्मण उन्ही मूल कान्य्कुब्ज ब्राह्मणों का दल है जिन्होने भारतीय सभ्यता की नीव पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार मे रखी। ये शुद्ध आर्यवंशी षट्कर्मा वेदपाठी आदिकालिक समूह है जो की आदिकाल से ही ब्राह्मण धर्म का अधिष्ठाता रहा है। सरयूपारीण ब्राह्मण उत्पत्ति संपादित करें भ्रांतियाँ संपादित करें सरयूपारीण ब्राह्मण की उत्पत्ति एवं इसकी वंशावली को लेकर आठ पंडितो ने किताबे लिखी हैं परन्तु सभी ने जो तर्क दिए, उनमें विरोधाभाष दिखता हैं। उदाहरण के लिए सन १९१४ में प्रयाग के पंडित भोलाराम अग्निहोत्री ने अपने किताब "सरयूपारीण ब्राह्मण द्वीजोत्पत्तिः" में सरयूपारीण ब्राह्मण की उत्पत्ति को लेकर कथा लिखी हैं उसके अनुसार- जब श्री रामचन्द्र जी के अश्वमेध यज्ञ हेतु कान्यकुब्ज प्रदेश से १६ ब्राम्हणों को बुलाया गया, यज्ञ के संपन्न होने के बाद वे जब अपने प्रदेश वापस जाने लगे तो श्रीराम ने उनसे वही बस जाने की विनती की और अपने धनुष से एक बाण चलाया जो २५ योजन दूर सरयू और घाघरा नदी संगम में जा गिरा और इस पच्चीस योजन की भूमि उन्होंने ब्राम्हणों की दान में दे दी। शर (बाण) और वार (निशाना) किये जाने के कारण इस भूमि क्षेत्र को शरवार या सरवार कहा जाने लगा और वहाँ के रहने वाले ब्राम्हण सरवरिया कहलाने लगे। अब इस कहानी पर गौर करे तो यह वाल्मीकि रामायण में वर्णित हैं की गोमती नदी के किनारे यह यज्ञ संपन्न हुआ था। जिसमे वशिष्ठ, वामदेव और जाबालि आदि ऋषियों ने भाग लिया था। परन्तु सरयूपारीण ब्राम्हणों में वामदेव और जाबालि के ब्राम्हण नहीं मिलते। अत: इसे भ्रमपूर्ण ही माना जायेगा की सरयूपारीण ब्राम्हणों के पूर्वज इस यज्ञ में सम्मलित थे। इसके अलावा इसमें जो वार (निशाना) शब्द का उपयोग किया गया हैं, उसका किसी भी संस्कृत ग्रंथो में उल्लेख नहीं हैं। अंग्रेज इतिहासकार सर एस एलियट के अपने एक लेख के अनुसार कन्नौज के रहने वाले कान्यकुब्ज की ही पांच शाखाओ में से एक सरयू के आस पास फैल गए। इसके अलावा अन्य अंग्रेज लेखकों सर जॉन वोम्स, डब्लू क्रूक के अनुसार कान्य और कुब्जा दो भाई थे जिनकी संताने ही आगे जाकर कान्यकुब्ज कहलाई। और इन्ही की एक शाखा राजा अज के समय सरयू नदी किनारे आ कर बस गए और सरवरिया ब्रम्हाण कहलाने लगे। इस कहानी में भी कई मतभेद देखे जा सकते हैं। जैसे की वायु पुराण के भुवन विन्यास प्रसंग में ब्रम्हाजी के जन्म से लेकर ब्राम्हण तक के जन्म तक की कथा हैं। परन्तु राजा अज के समय में ब्राम्हणो के वहाँ आकर बसने या उनका शाखाओ में विरक्त होने का कोई सन्दर्भ नहीं हैं। उत्पत्ति संपादित करें पुराणों से पता चलता हैं की देवगण हिमालय पर्वत (पामीर का पठार) के आस-पास रहा करते थे तथा उसी के निकट ही महानतम ऋषियों के आश्रम हुआ करते थे। चुकि पुराणों में हिमालय पर्वत श्रंखला को बहुत ही पवित्र माना गया हैं अतः ऋषियों का वहाँ रहना सम्भव लगता हैं। यदि पौराणिक संदर्भो की ओर देख जाए तो जब देवराज इंद्र की आतिथ्य स्वीकार कर अपने राजधानी को लौटते हुए राजा दुष्यंत ने ऋषियों के परम क्षेत्र हेमकूट पर्वत की ओर देखा था जिसका वर्णन पद्म पुराण में आया हैं : इसी प्रकार बाराह पुराण के एक प्रसंग में महर्षि पुलस्त्य, धर्मराज युधिष्ठिर से यात्रा के सन्दर्भ में बताते हैं की: हे राजेन्द्र लोक विश्रुत देविका नदी को जाना चाहिए जहा ब्राम्हणों कि उत्पत्ति सुनी जाती है। देविका नदी के तट पर वीरनगर नामक सुन्दर पुरी है जो समृद्ध और सुन्दर हैं। एक अन्य पुराण के सन्दर्भ से निश्चित होता हैं की देविका नदी के किनारे हेमकूट नामक किम्पुरुष क्षेत्र में ऋषि-मुनि रहा करते थे। देविका और सरयू क्षेत्र के रहने वाले आविक और सारव कहे जाते हैं। अनुमान हैं, की सारव और अवार (तट) के संयोग से सारववार बना होगा, और फिर समय के साथ उच्चारण में सरवार बन गया होगा। इसी सरवार क्षेत्र के रहने वाले सरवरिया कहे जाने लगे होंगे। इस सम्बन्ध में मत्स्य पुराण में निम्न सन्दर्भ मिलता हैं: अयोध्यायां दक्षिणे यस्याः सरयूतटाः पुनः । सारवावार देशोयं तथा गौड़ः प्रकीर्तितः ।। अर्थात- अयोध्या के दक्षिण में सरयू नदी के तट पर सरवावार देश हैं उसी प्रकार गोंडा देश भी मानना चाहिए। सरयू नदी कैलाश पर्वत से निकल कर विहार प्रदेश में छपरा नगर के समीप नारायणी नदी में मिल जाती हैं। देविका नदी गोरखपुर से ६० मील दूर हिमालय से निकल कर ब्रम्हपुत्र के साथ गण्डकी में मिलती हैं। गण्डकी नदी नेपाल की तराई से निकल कर सरवार क्षेत्र होता हुआ सरयू नदी में समाहित होता हैं। सरयू, घाघरा, देविका (देवहा) ये तीनो नदियाँ एक ही में मिल कर कही-कही प्रवाहित होती हैं। महाभारत में इसका उल्लेख हैं की सरयू, घाघरा और देविका नदी हिमालय से निकलती हैं, तीनो नदियों का संगम पहाड़ में ही हो गया था। इसीलिए सरयू को कही घाघरा तो कही देविका कहा जाता हैं। पुराणों के अनुसार यही ब्रम्ह क्षेत्र हैं, जहाँ पर ब्राम्हणों की उत्पत्ति हुई थी यथासमय ब्रम्ह देश से जो ब्राम्हण अन्य देश में गए, वे उस देश के नाम से अभिहित हुए। जो विंध्य के दक्षिण क्षेत्र में गए वे महाराष्ट्रीय, द्रविड़, कर्नाटक और गुर्जर ब्राम्हण के रूप में प्रतिष्ठित हुए। और जो विंध्य के उत्तर देशो में बसे, वे सारस्वत, कान्यकुब्ज, गोंड़, उत्कल, मैथिल ब्राम्हण के रुप में प्रतिष्ठित हुए। इस तरह दशविध ब्राम्हणों के प्रतिष्ठित हो जाने पर ब्रम्हदेश के निवासी ब्राम्हणों की पहचान के लिए उनकी सर्वार्य संज्ञा हो गई। वही आगे चल कर सर्वार्य, सरवरिया, सरयूपारीण आदि कहे जाने लगे।

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