श्रीकृष्ण और राधा की महारास लीला के गूढ़ अर्थ - श्रीकृष्ण यानि परमात्मा और राधा यानि आत्मा। रासलीला आत्मा और परमात्मा का ऐसा मिलन है जिसमें आत्मा को ऐसा अहसास होने लगता है कि मानों वह ही परमात्मा है। जब आत्मा का अपना अस्तित्व परमात्मा के चरणों में समर्पित हो जाता है तब आत्मा विलुप्त हो जाती है और शेष रह जाता है परमात्मा। निर्देशक रामानन्द सागर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा0 राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए बताते हैं कि उन्होंने भक्ति की व्याख्या करते हुए मेडिटेशन और डिवोशन में अन्तर किया है और कहा है कि उपासना को भक्ति नहीं कहते हैं बल्कि भक्ति तो प्रेम का एक स्वरूप है और राधा जी तो प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं। निर्देशक के इस व्याख्यान के बाद धारावाहिक की कथा आगे बढ़ती है। कंस अपने महल में सोया पड़ा है लेकिन उसे भयावह स्वप्न आते हैं। उसे दिखता है कि अनेक पिशाच अपने अस्त्र शस्त्र लेकर उसके चारों तरफ मण्डरा रहे हैं और डरावने नृत्य कर रहे हैं। पिशाच उसे मारना चाहते हैं। एक पिशाच ने अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और कटा हुआ सिर आकाश की ओर उड़ गया है। डर कर कंस की आँख खुल जाती है। वह अपने बिस्तर उठ बैठता है। उसे हर दिशा में भगवान विष्णु का चतुर्भुज रूप दिखायी पड़ता है। भयभीत कंस अगले दिन राजसभा बुलाता है। बाणासुर कंस को युद्धनीति बताता है और कहता है कि शत्रु से डरने पर शक्ति क्षीण हो जाती है। इसलिये आपको अपने हृदय से डर बाहर निकाल फेंकना चाहिये। लेकिन कंस कृष्ण के चमत्कारों से इतना भयभीत है कि वह उनके हाथों से मारे जाने की बजाय आत्महत्या करने की बात कहने लगता है। तब कंस का महामंत्री चाणुर कहता है कि मैंने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के परम शिष्य ऋषि सत्यक को राजसभा में बुलाया है जो आपके हित की रक्षा करेंगे। कंस को सम्बल मिलता है। ऋषि सत्यक कंस से महेश्वर का धनुर्यज्ञ करने का परामर्श देता है। वह बताता है कि भूतनाथ द्वारा प्रदत्त धनुष के माध्यम से यह धनुर्यज्ञ सम्पन्न होगा। कंस इस धनुष का ठिकाना पूछता है। तब सत्यक कंस को बताता है कि धनुष पूर्वकाल से मथुरा के राजकुल के पास है और इस समय आपके के ही गुप्त कोष में रखा है जिसका आपको ज्ञान नहीं है। भगवान त्रिपुरारी ने इसी धनुष से त्रिपुरासुर का वध किया था फिर अनेक हाथों से होता हुआ यह मथुरा के राजकुल के पास पहुँचा है। सत्यक बताता है कि भगवान शंकर के ऐसे दो ही धनुष थे। एक त्रेतायुग में भगवान राम के द्वारा तोड़ा गया था और दूसरा मथुरा के राजकुल के पास अभी भी सुरक्षित है। सत्यक कंस से कहता है कि यह धनुर्यज्ञ निर्विघ्न हो सका तो आप अपराजेय हो जायेंगे। किन्तु यदि यह यज्ञ भंग हो जाता है तो यजमान का विनाश हो जाता है। इस पर कंस यज्ञ कराने को लेकर असमंजस में पड़ता है तो सत्यक कहता है कि शिव के इस धनुष को तोड़ने की शक्ति केवल विष्णु के पास है इसलिये आप निश्चिन्त रहे। बाणासुर धनुर्यज्ञ में कृष्ण को भी आमंत्रित करने का परामर्श देता है। उसकी मंशा है कि यज्ञ से सिद्धि प्राप्त होते ही कंस कृष्ण का वध भी कर दे। कृष्ण वध के तमाम तरीकों पर भी विचार होता है। उन्हें मतवाले हाथी के पैरों तले कुचलवाने, मल्लयु़द्ध में पहलवानों के हाथों मरवा देने अथवा स्वयं कंस की खड्ग से शीश उतार देने के सपने कंस की राजसभा में पिरोये जाने लगते हैं। किन्तु अब समस्या यह आन पड़ती है कि कृष्ण को किसके जरिये आमन्त्रित किया जाय। कंस का मंत्री चाणुर अक्रूर के माध्यम से कृष्ण को बुलाने का सुझाव देता है। कंस को संशय है कि अक्रूर राजभक्त है, वह ऐसा नहीं करेगा। चाणुर अक्रूर को प्रलोभन देने का सुझाव देता है। कंस अक्रूर को बुलवाता है। अक्रूर के आने पर कंस उनसे कहता है कि वह सभी यदुवंशी सरदारों के बीच के मतभेद दूर कर उनमें एकता स्थापित करना चाहता है ताकि यदुवंश समृद्धशाली हो सके। इसके लिये वह अक्रूर को मथुरा आधीन एक राज्य का राजा बनाने का प्रस्ताव रखता है। कंस कहता है कि इस राज्याभिषेक के अवसर पर मथुरा में एक महोत्सव का आयोजन किया जायेगा। किन्तु अक्रूर कंस की चालों को समझते हैं। अक्रूर कहते हैं कि मैं राजा शूरसेन के सेवक हूँ और सेवक कभी राजसिंहासन पर नहीं बैठ सकता है। इसलिये कंस महाराज शूरसेन के पुत्र वसुदेव को युवराज घोषित करे। कंस एक शर्त के साथ इस पर सहमति देने को तैयार होता है। वह अक्रूर से कहता है कि देवकी का आठवां पुत्र कृष्ण मेरे रास्ते का जहरीला काँटा है। उसे साफ करने में तुम्हें मेरी सहायता करनी होगी। इसके लिये तुम कृष्ण को किसी बहाने से मथुरा लेकर आओ। किन्तु अक्रूर कंस के षड्यन्त्र में शामिल होने से इनकार कर चले जाते हैं।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
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