जागर में मुख्यतः पूरी कहानी चलती है। इस कहानी में मुख्यतः तीन-चार धुने व ताले होती हैं। पुन अवगत करा दूं कि जागर परम्परा में दो शैली भीतर गायन,मंडान की शैली होती है और भीतर गायन शैली कमरे के अंदर होती है।जबकि मंडाण खुले मैदान में होता है।आज उत्तराखंड से जागरी विद्या के पतन का प्रमुख कारण है- उत्तराखंड से लगातार
हो रहे पलायन ही है। राज्य में विगत कहीं वर्षों से पलायन की मार ऐसी पड़ी है कि वर्तमान पीढ़ी जो बाहर बस चुकी है,वह इस विद्या तो छोड़िए,अपनी पहाड़ी भाषा को दूर दूर तक नई जानते। आज के समय में ये देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जागर एक भावना है। आप एक स्वर्गीय शक्ति या कहिये एक आत्मा है जागर के द्वारा उसे पुनः जाग्रत करना है
आज उसकी भावना को पकड़ना अत्यंत आवश्यक है कि देवी अथवा देवता को क्या प्रिय था,इस बात को जारी को किस समय पर पकड़ना है वह देवता या पितृ आत्मा की आदतों को समझकर करता है।
अब जागर में आती है एक और विद्या जिसे बुगशाड़ी विद्या(एक सिद्ध तांत्रिक विद्या)। जौनसार एक ऐसा गड है जहां आज भी आलौकिक तंत्र विद्याएँ प्रचलित है। जागरों में भी एक मत नही है। होता यह है कि भाषा और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जागर भी बदलते हैं। जैसे- राउंसल्यू कु बोडू , बुरासयुं कु फूल। जिस जगह जो वस्तु उपस्थित थी,
उसी के अनुसार यहां पर वर्णन होता है।
यह परंपराए अभी भी है किंतु कथाएं हर स्थान पर बदली हुई हैं। क्योंकि इनको लिखित रूप में कोई वर्णन नही दिया गया है जो कि एक वेदना है। इस कारण यह सत्यापित करना अत्यंत कठिन होजाता है कि यह वास्तव में सत्य है या मात्र एक किवदंती। हमने देखा है कि 12 वर्षो में नंदा देवी राजजात की यात्रा होती है। जिसमे देवी को डोली में ले जाया
जाता है व खाटू की पूजा होती है। इस पूजा को पूर्ण करने के लिए भी सिद्ध जागरी को बुलाया जाता है।
उत्तराखंड के लोक नृत्य: एक संक्षिप्त परिचय
folk Jaagar of Uttarakhand
Pahari folk Jaagar
उत्तराखंड की संस्कृति नाग नृत्य
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति उत्तराखंड के रीति रिवाज
नाग देवता का नित्यृ नाग राजा
Uttarakhand Culture
उत्तराखंड की संस्कृति - नृत्य, त्यौहार, भोजन
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