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यह सुनकर अर्जुन ने चौंककर कहा, "उर्वशी !आप तो हमारी वंश-माता हैं, फिर मैं ऐसा पाप-कार्य कैसे कर सकता

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यह सुनकर अर्जुन ने चौंककर कहा, "उर्वशी ! आप तो हमारी वंश-माता हैं, फिर मैं ऐसा पाप-कार्य कैसे कर सकता हूं? देव सभा में उर्वशी नाम की महासुंदरी अप्सरा आया करती थी, जिसको अर्जुन वंश-माता के रूप में देखा करता था| उसके हृदय के भाव को न जानकर चित्रसेन ने समझा कि वह उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया है| इसीलिए उसने एक दिन उर्वशी को उनके पास भेज दिया| उर्वशी अपना कामुक रूप लेकर उनके पास पहुंची और सहवास के लिए इच्छा प्रकट करने लगी| अर्जुन के तेजस्वी रूप को देखकर वह काम से पीड़ित हो रही थी| उसने अर्जुन को अपने साथ रमण करने की इच्छा जताई| यह सुनकर अर्जुन ने चौंककर कहा, "उर्वशी ! आप तो हमारी वंश-माता हैं, फिर मैं ऐसा पाप-कार्य कैसे कर सकता हूं? आपकी यह धारणा मेरे विषय में गलत है कि मैं आपके प्रति कामासक्त हूं| मैं तो आपको पूज्या मानकर आपका सम्मान करता हूं|" अर्जुन की इस बात को सुनकर भी उर्वशी की काम पीड़ा उतनी ही बनी रही और उसने कहा, "छोड़ो, इस धारणा को वीरवर ! आओ मेरी काम-पीड़ा को शांत करो|" जब उर्वशी के कई बार कहने पर भी अर्जुन तैयार नहीं हुआ तो उसने क्रुद्ध होकर उसे नपुंसक हो जाने का शाप दिया| उसके लिए निश्चित अवधि थी| आगे चलकर यह शाप ही अर्जुन का सहायक बना और अज्ञातवास के समय इसी के कारण विराट के यहां उनका रहना संभव हुआ| बृहन्नला बनकर वह उत्तरा को नाचना-गाना सिखाता रहा और इस तरह अपना वह सारा समय काटता रहा| इंद्र से अनेक दिव्यास्त्र प्राप्त करके अर्जुन बदरी वन में नर-नारायण के आश्रम में पहुंचा| अन्य पांडव भी वहीं प्रतीक्षा कर रहे थे| आकर उसने अपने भाइयों को अपनी यात्रा का सारा विवरण सुनाया और जो दिव श्रीकृष्ण के पूछे बिना कोई कार्य नहीं करता था और उन्हें अपना सच्चा सखा मानता था| कृष्ण ही उसकी विजय के आधार थे| यदि उसे ऐसा सारथी नहीं मिलता, तो शायद वह कौरवों की उस विशाल सेना को नहीं जीत पाता, जिसमें भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे महारथ काटकर ही निकल गया था, नहीं तो उस दिन उसके जीवन का अंत था| इस तरह अनेक स्थलों पर हम अर्जुन के जीवन में कृष्ण की महत्ता पाते हैं| कृष्ण के उपदेशों के फलस्वरूप ही वह निष्काम कर्मयोगी हो गया था| कर्तव्य के आगे सुख और दुख एक जैसे ही उसको दिखाई पड़ते थे| इसी उपदेश की शक्ति से वह पूरे महाभारत युद्ध में कभी विचलित नहीं हुआ| हम पहले ही देख चुके हैं कि स्वार्थ तो उसके हृदय पर कभी अधिकार नहीं जमा सका था| इंद्र ने उससे इंद्रपुरी में रहकर ऐश्वर्य भोगने के लिए कहा था, लेकिन अपने सुख के लिए उसने भाइयों का तिरस्कार नहीं किया| वास्तव में वह पूरा साधक था| एक बार जिसकी भी दृढ़ कल्पना अपने हृदय में कर लेता था, फिर कोई भी शक्ति उसे उस मार्ग से हटा नहीं पाती थी| इसी प्रकार उर्वशी के ऊपर कामासक्त न होकर उसने अपने अखण्ड ब्रह्मचर्य का परिचय दिया था| एक तरह से देखा जाए, तो वह जितेंद्रिय था| उसको अपने मन पर अधिकार था और जब कभी किसी प्रकार का संशय उठता भी था, तो कृष्ण उसको दूर करने के लिए उसके पास रहते थे| उसके किसी के साथ प्रणय-संबंध जोड़ने में भी एक प्रकार गौरव रहता था| छिपकर प्रेम करना तो उसे आता ही नहीं था| वह तो पहले अपने पराक्रम का परिचय देता था और अपने आपको पूरी तरह समर्थ प्रमाणित करके किसी सुंदरी से प्रेम करता था| उसके प्रेम में वीरों की सच्चाई थी| राजपरिवार का व्यक्ति होते हुए भी वह कूटनीति नहीं जानता था| वह तो सीधा-सच्चा योद्धा था| पर्वत से टकराने की समार्थ्य रखता था, लेकिन साम, दाम, दण्ड, भेदपूर्ण नीति में निपुण नहीं था| इसके लिए तो कृष्ण ही सदा उसको मार्ग दिखाया करते थे| वह तो इतना सीधा था कि स्वयं अपने समर्थक धृष्टद्युम्न से ही इस आधार पर उलझ पड़ता था कि उसने द्रोणाचार्य को मारा था| यद्यपि द्रोणाचार्य के वध के पीछे सारी चाल तो कृष्ण की थी| धृष्टद्युम्न ने तो उस चाल के बाद द्रोणाचार्य को केवल मार डाला था, और फिर द्रोणाचार्य का मरना पांडवों के हित में ही था; लेकिन अर्जुन के हृदय में गुरु भक्ति उमड़ पड़ी और उस समय अपना हित-अहित उसे कुछ भी नहीं सूझा| इससे स्पष्ट होता है कि वह सरल हृदय योद्धा था| उसके लिए सदा एक निर्देशक की आवश्यकता रहती थी और वह निर्देशक कृष्ण थे| यदि वे न होते तो गीता का उपदेश सुनने के पश्चात भी हो सकता था अर्जुन स्वजनों की मृत्यु देखकर विचलित होकर युद्धभूमि से चला जाता, लेकिन कृष्ण ने सदा उसको उचित मार्ग पर लगाए रखा| इस तरह भावुकता अर्जुन ने चरित्र में एक शिथिलता के रूप में थी, लेकिन सरल हृदय व्यक्तियों में वह स्वाभाविक ही है| यदि अर्जुन और अन्य पांडव इतने सरल हृदय वाले नहीं तो दुष्ट दुर्योधन उनको इतने कष्ट न दे पाता| वे तो सदा सत्य, न्याय और मर्यादा की रक्षा करना ही अपने जीवन का dharmik kahaniya,dharmik kahani,dharmik majedar kahaniya,dharmik katha,dharmik kahaniyan,dharmik story,dharmik story in hindi,dharmik kahaniya hindi,dharmik,dharmik kahaniya in hindi,dharmik pauranik kathaen,dharmik moral stories,dharmik prasang,धार्मिक कहानी,bhakti moral dharmik kahaniya,dharmik moral kahaniya,inspirational dharmik kahaniya,moral dharmik story,धार्मिक कथा,dharmik stories,dharmik kathayen,adhyatmik kahaniya,pauranik kahaniya fair use copyright disclaimer under section 107,fair use copyright disclaimer for youtube,copyright disclaimer for youtube,copyright disclaimer in description,fair use copyright disclaimer copy paste,how to add copyright disclaimer in description,fair use copyright disclaimer,description में copyright disclaimer कैसे लिखे,copyright disclaimer kaise likhe,disclaimer for youtube video,copyright disclaimer,youtube copyright disclaimer #shrikrishna #motivation # #inspirationalquotes #dharmikkhani #facts #dharmikkahani #motivationalquotes #chidiyaaur #love #dharmikstory

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