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टुंडीया राक्षस का टाइम आ गया 😈😈😈

SEVAK DEVI HADIMBA👑 6,615 2 months ago
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Manali fagli . JAI DEVI HIDMA .JAI MANU MAHARAJ टुंडिया राक्षस के आतंक से छुटकारा पाने के लिए मनाई जाती है फागली यूं तो फागली उत्सव फाल्गुन महीने में मनाया जाता है। लेकिन मनाली गांव का फागली उत्सव माघ महीने के दूसरे रविवार को ही शुरू होता है, जिसका आयोजन 11 दिन तक चलता है। उत्सव शुरू होने से पहले गढ़ जाच मनाई जाती है। फिर दूसरे बुधवार को फागली उत्सव का समापन होता है। मनाली गांव में 15 दिन पहले ही फागली उत्सव मनाने की जनश्रुति इस प्रकार है:- टुंडा राक्षस या जिसे टुडिया भी कहा जाता था, वह इंसानों को खाता था। इसने कठोर तप से कई सिद्धियां प्राप्त की थीं और इसीलिए उसे वश में करना बड़ा मुश्किल काम था। आसपास के सभी देवी-देवता जब उसे वश में न कर सके तो वासुकी नाग से सलाह मांगी गई। उन्होंने कहा कि टुंडा की शादी टिबंर शाचकी से करवा दी जाए। (शाचकी शालंग-कालंग नाम के गांव की युवती थी।) सबने टिबंर शाचकी के सामने प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव के बदले टिबंर शाचकी ने कहा कि मैं तैयार तो हूं मगर साल में एक बार इस उल्टे पेड़ (देवदार का यह पेड़ ऊझी घाटी में हलाण के कुम्हारटी में है। कहा जाता है कि हलाण इलाके के देवता वासुकी नाग ने किसी शक्ति की परीक्षा लेने के लिए इस पेड़ को जमीन से उखाड़कर उल्टा खड़ा कर दिया था। ऐसे में आज भी यह देखने में ऐसा ही लगता है।) के पास आऊंगी और इस दौरान मुझे खाने-पीने का सारा सामान यहां पहुंचा दिया जाए। देवताओं ने उसकी सहमति से उसका विवाह टुंडा से करवाया और उसे उसके देश जाने के लिए भेज दिया। मनाली के दूनी चन्द ठाकुर कहते हैं कि मनाली गांव में यह मान्यता है कि जब सभी देवताओं ऋषियों ने विचार विमर्श के बाद यह तय किया कि टिंबंर छाचकी से विवाह करने पर टुंडिया राक्षस को सभी बारी-बारी अपने-अपने देऊघरों में आदर सहित बुलाएंगे। देवताओं को मानना था कि टुंडिया के राक्षस होने के कारण वह मानव बलि की मांग करेगा, ऐसे में अब यह संशय था कि उसे पहले कौन‌ बुलाएगा। तब मनु महाराज ने सबसे पहले टुण्डिया को बुलाने की हामी भरी। मनु ऋषि कहा कि मैं नर बलि नहीं दूंगा लेकिन तुझे नर मांस जैसा आभास दिलाया जाएगा। टुंडिया ने उस युक्ति के जाल में फंसकर हां कर दी और इधर मनु महाराज ने अपने हारियानों को कहा कि एक दूसरे के बाल जलाओ जिससे मानव शरीर के जलने की गंध आए और पूरे गांव में घर-घर ले जाकर मदिरा पान कराया। जब फागली का अंत हुआ तो टुंडी ने कहा वोह आपने कहा था कि बिना बलि दिए नर मांस के भक्षण का एहसास करवाया जाएगा वोह, तो मनु जी ने कहा तुझे जिंदा आदमी के मुश्क जो दे दी। इस तरह मनाली गांव से फागली की शुरुआत हुई और टुंडिया बिना नर बलि के वापिस गया। (यह दंतकथा है प्रामाणिक बात नहीं) बताया जाता है कि शाचकी जनहित के लिए राक्षस के साथ शादी करके उसके देश तो गई, पर वह इससे खुश नहीं थी। बाद में उसकी मौत हो गई। उझी के देवताओं को लगा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया था। कहते हैं कि इस श्राप से उझी घाटी के लोग अकाल मरने लगे। देवताओं और ऋषि-मुनियों ने विचार-विमर्श कर टिबंर शाचकी की आत्मा का आह्वान किया और उसे देवी रूप में पूजने का फैसला किया। कहा जाता है कि जब दोष से मुक्ति के लिए देवतों ने टिंबर शाचकी की आत्मा को आमंत्रित किया तो साथ में टुंडिया राक्षस भी आया। उसने फिर से पूरी घाटी में आंतक मचाना शुरू कर दिया। एक दन्त कथा के अनुसार जब टुण्डिया का आंतक बढ़ता गया तो उसके आंतक से छुटकारा दिलाने के लिए घाटी के देवी देवताओं ने इसका ज़िम्मा माता हडिम्बा को दिया। टुंडिया को मानव के बालों को जला कर पहले आकर्षित किया। उसके बाद मंदिर के आगे एक बडा सा शहतीर रखा गया जिसे टुंडिया ने आदमी समझकर खाना शुरू किया था। (मनाली की फागली में वह शहतीर आज भी मंदिर के पास रखा जाता है।) कहते हैं कि टुंडा राक्षस फिर भी नहीं माना। आखिर में वासुकी नाग ने टुंडा को हलाण के देवदार के पास बांध दिया। कहते हैं कि इसी की याद में फागली उत्सव आज भी मनाया जाता है और सांकेतिक रूप से यह पंरपरा निभाई जाती है। मनाली के लोगों की मान्यता है कि मनु महाराज ने टुंडिया को मारा, जबकि यह माना जाता है कि टुंडिया आज भी जिंदा है और वह हर वर्ष फागली में देवताओं का मेहमान बनकर आता है। जिसके कई प्रमाण समय-समय पर मिलते हैं। इसी कारण से हर साल फागली उत्सव की इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। जिंदा इंसान के बाल जलाकर उसे मानव की गंध सुंघाई जाती है। इस परंपरा के तहत एक-दूसरे के बालों पर चुपके से माचिस की तीली लगाई जाती है। 11 दिन तक चलने वाली फागली में हर दिन देव कार्यवाही का निर्वहन किया जाता है। उत्सव में टुंडिया राक्षस की भी मेहमानवाजी होती है, ताकि गांव के लोग सालभर प्रेत आत्माओं से बचे रहे और सुख समृद्धि बनी रहे। उत्सव के दौरान ओल्ड मनाली और ढुंगरी में मिट्टी की खोदाई से संबंधित कृषि कार्य नहीं होते। गऊशाला से गोबर भी नहीं निकाला जाता। बताया जाता है कि कि टिबंर शाचकी को जमलू देवता निमंत्रण देकर बुलाते हैं और शांडिल्य ऋषि वापस भेजते हैं। मनाली में फागली उत्सव के बाद दूसरे गांवों में बहुत सारे देवता फागली उत्सव मनाते हैं। कहीं-कहीं मुखौटे पहनकर खेपरा नृत्य भी होता है, जो कि राक्षसों को समर्पित होता है। अलेऊ, शलिण व जाणा आदि गांवों में खेपरा नृत्य होता है। #kullutdeshofficial #kullumanali #kullu #historyofkullu #historyofhimachalpradesh #kulluvalley #kullumanaliadvantures #kullumanaliheavenonearth #kullutdesh #historyofhimachal #fagali #fagalifestival

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