इसलिये मैं मनुष्यों की उत्तम शिक्षा के अर्थ सब वेदादि शास्त्र और सत्याचारी विद्वानों की रीतियुक्त इस 'व्यवहारभानु' ग्रन्थ को बनाकर प्रसिद्ध करता हूं कि जिसको देख दिखा, पढ़ पढ़ाकर मनुष्य अपने और अपने अपने संतान तथा विद्यार्थियों का आचार अत्युत्तम करें कि जिससे आप और वे सब दिन सुखी रहें।
इस ग्रन्थ में कहीं कहीं प्रमाण के लिए संस्कृत और सुगम भाषा लिखी और अनेक उपयुक्त दृष्टान्त देकर सुधार का अभिप्राय प्रकाशित किया है कि जिसको सब कोई सुख से समझ के अपना अपना स्वभाव सुधार के सब उत्तम व्यवहारों को सिद्ध किया करें।
- दयानन्द सरस्वती
काशी
सं० १९३९, फाल्गुन शुक्ला १५
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अथ व्यवहारभानुः
ऐसा कौन मनुष्य होगा कि जो सुखों को सिद्ध करने वाले व्यवहारों को छोड़कर उल्टा आचरण करे। क्या यथायोग्य व्यवहार किये बिना किसी को सर्व सुख हो सकता है ? क्या कोई मनुष्य अपनी और पुत्रादि सम्बन्धियों की उन्नति न चाहता हो ? इसलिये सब मनुष्यों को उचित है कि श्रेष्ठ-शिक्षा और धर्मयुक्त व्यवहारों से वर्तकर सुखी होके दुःखों का विनाश करें। क्या कोई मनुष्य अच्छी शिक्षा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष फलों को सिद्ध नहीं कर सकता ? और इसके विना पशु के समान होकर दुःखी नहीं रहता है ? इसलिये सब मनुष्यों को सुशिक्षा से युक्त होना अवश्य है। जिसलिये यह बालक से लेके वृद्धपर्य्यन्त मनुष्यों के सुधार के अर्थ (व्यवहार संबन्धी शिक्षा का) विधान किया जाता है इसलिए यहां वेदादिशास्त्रों के प्रमाण भी कहीं कहीं दीखेंगे। क्योंकि उनके अर्थों को समझने का ठीक ठीक सामर्थ्य बालक आदि का नहीं रहता। जो विद्वान् प्रमाण देखना चाहे तो वेदादि अथवा मेरे बनाए ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों में देख लेवें।
प्रश्न
कैसे पुरुष पढ़ाने और शिक्षा करनेहारे होने चाहियें ?
उत्तर
पढ़ाने वालों के लक्षण -
आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षाधर्मनित्यता।
यमर्था नापकर्षन्ति स वै पण्डिता उच्यते ॥ १ ॥
जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खेंच सके वह पण्डित कहाता है ॥१॥
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्दधान एतत् पण्डितलक्षणम् ॥२॥
जो सदा प्रशस्त धर्मयुक्त कर्मों का करने और निन्दित अधर्मयुक्त कर्मों को कभी न सेवनेहारा, न कदापि ईश्वर, वेद और धर्म का विरोधी और परमात्मा, सत्यविद्या और धर्म में दृढ़ विश्वासी है वही मनुष्य 'पण्डित' के लक्षणयुक्त होता है ॥२॥
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व्यवहारभानु ॥ Vyavaharabhanu ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक
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आर्योद्द्येश्यरत्नमाला ॥ Aaryoddyeshyaratnamala ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक
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पता-
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व्यवहारभानु (कक्षा 02) [भूमिका-1] ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्रजक