यत्र भाव : शिवं दत्ते , द्यौः कियद्दूरवर्तिनी ।
यो नयत्याशु गव्यूतिं क्रोशार्धे किं स सीदति ? ॥ 4 ||
अन्वयार्थ - ( यत्र भाव : ) जहाँ भाव ( शिवं दत्ते ) मोक्ष को देता है [ वहाँ ] ( द्यौः ) स्वर्ग की प्राप्ति ( कियदूरवर्तिनी ) कितनी दूर है ? ( य : गव्यतिं ) जो मनुष्य दो कोश तक ( आशु नयति ) [ भार को ] शीघ्र ले जाता है । ( स : ) वह ( क्रोशार्धे ) आधा कोश ले जाने में ( किं सीदति ) क्या दुःखी हो सकता है ? अर्थात् नहीं ।
जिन - भावों से नियम रूप से , मिलता है जब शिवपुर है ,
उन भावों से भला ! बता दो , क्या ? ना मिलता सुर पुर है ।
द्रुतगति से जो वाहन यात्रा , कई योजनों की करता ,
अर्ध - कोश की यात्रा करने , में भी क्या ? वह है डरता ॥ 4 ॥
The soul that is capable of conferring the divine status when meditated upon , how far can the heavens be from him ? Can the man who is able to carry a load to a distance of two koses feel tired when carrying it only half akos ?
Date : 2016-07-24
Gatha: 04
Granth: Ishtopadesh
Pravachansar: Muni Shri Pranamya Sagar Ji