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आर्यिका 105 पूर्णमती माता जी के स्वर में । मूक माटी हिंदी में। Mookmati | PurnaMati mata ji

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आर्यिका 105 पूर्णमती माता जी के स्वर में । मूक माटी हिंदी में। VidayaSagar Maharj Jain Dharma

mook mati in hindi

धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म केसार को आज की भाषा एवं मुक्त-छन्द की मनोरम काव्य-शैली में निबद्ध कर कविता-रचना को नया आयाम देने वाली एक अनुपम कृति

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धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म केसार को आज की भाषा एवं मुक्त-छन्द की मनोरम काव्य-शैली में निबद्ध कर कविता-रचना को नया आयाम देने वाली एक अनुपम कृति प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश ‘मूक माटी’ महाकाव्य का सृजन आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय अपलब्धि है। यबसे पहली बात तो यह है कि माटी जैसी अकिंचिन, पद-दलित और तुच्छ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त अनोखी है


MookMati Poorna Mati Mata Ji ki Awaj me VidayaSagar Maharj Jain Dharma Channel

आर्यिका 105 पूर्णमती माता जी के स्वर में । मूक माटी हिंदी में। VidayaSagar Maharj Jain Dharma


@ मूकमाटी के खंड 01-संकर नहीं, वर्णलाभ; 02-शब्द सो बोध नहीं, बोध सो शोध नहीं; 03-पुण्य का पालन, पाप का प्रक्षालन; 04-अग्नि की परीक्षा, चाँदी सी राख़ !!


क्यों खास है आचार्य श्री जी द्वारा रचित कालजयी रचना “मूकमाटी”

@ मुख्य पात्र है मूक #माटी और बात तो यह है कि #माटी जैसी अकिंचिन, पद-दलित और तुच्छ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त अनोखी है !!

#मूकमाटी यह काव्य अनोखा,
सब काव्यों में पहला है
माटी सम जग के जीवों को
मंगल घट में बदला है । - वन्दनीय आर्यिका पूर्ण मति माताजी

@ आचार्य श्री की कृतियों काव्य सृजन पर अनेकानेक शोध हो चुके है / हो रहे है, इनमें से अनेक शोध प्रबंध अब तक प्रकाशित होकर पाठक जगत को आचार्य प्रवर के मौलिक एवं नूतन भावों का परिचय करा रहे हैं !!

@ देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से अभी तक *4 डी-लिट्‌, 30 पी-एचडी, 8 एम.फिल, 2 एम.एड. तथा 6 एमए* के शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं !!

@ देश-विदेश के लगभग 300 जैन जैनेत्तर विद्वानों ने “मूकमाटी” पर समीक्षात्मक विचार लिखे हैं जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित ‘मूकमाटी मीमांसा’ के रूप में हैं !!

@ कालजयी हिन्दी महाकाव्य 'मूकमाटी' के अंग्रेजी रूपांतरण “The Silent Earth” का लोकार्पण समारोह में तत्कालीन “राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल” ने किया था । पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'द साइलेंट अर्थ' के नाम से लालचन्द्र जैन, ललितपुर (उप्र) ने किया है !!

@ महाकाव्य मूकमाटी अँग्रेजी में तीन बार, मराठी में तीन बार, कन्नड़ में दो बार पृथक-पृथक मनीषियों द्वारा अनुवादित हो चुका है तथा बांग्ला एवं गुजराती में भी अनुवादित होकर पाठकों में नूतन विचारों का संचार कर रहा है !!

@ भारत के कई महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल है महाकाव्य मूकमाटी
#छत्तीसगढ़ के पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर*
#उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस*
#महाराष्ट्र के राष्ट्रसंत तुकड़ोजी नागपुर विद्यापीठ नागपुर*
#गुजरात के सौराष्ट्र विश्विद्यालय राजकोट*
#मध्य प्रदेश के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल*
सहित विभिन्न लौकिक पाठ्यक्रमों में इस कृति को शामिल किया गया है, और अन्य महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल होने की प्रिक्रिया चल रही है !!

@ #मध्यप्रदेश_विधानसभा के पुस्तकालय में अध्ययन के लिए सुशोभित है !!

#विद्याधर_से_विद्यासागर

@ गुरुवर ने अपनी इस कृति के माध्यम से माटी की तुच्छता के चरम भव्यता के दर्शन करके उसकी विशुद्धता और उपक्रम को मुक्ति की मंगल-यात्रा के रूपक में ढालना कविता के अध्यात्म के साथ अ-भेद की स्थिति में पहुँचना है !!

@ आचार्य श्री विद्यासागर की कृति ‘मूक माटी’ मात्र कवि का काव्य नहीं है, यह एक दार्शनिक सन्त की आत्मा का संगीत है !!

@ निर्मल-वाणी और सार्थक संवाद में मुक्ति छन्द का प्रवाह और काव्यानुभूति की अन्तरंग लय समन्वित करके आचार्यश्री ने इसे काव्य का रूप दिया है।

@ पहला पृष्ठ खोलते ही महाकाव्य के अनुरूप प्राकृतिक परिदृश्य मुखर हो जाता है

@ ‘मूक माटी’ महाकाव्य का सृजन आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय अपलब्धि है !!

@ सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति शंखनाद करने वाला 'मूकमाटी' महाकाव्य अपनी स्वर्णिम आभा से साहित्याकाश को आलोकित कर रहा है !!

@ पद दलित चेतना, आतंकवाद, शोषण, वर्ग भेद, समाजवाद, आर्थिक विषमता, भौतिकता, भ्रष्टाचार, आदि अनेक राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं एवं विद्रूपताओं के प्रति आचार्य श्री ने विगुल बजाया है !!

@ 'मूकमाटी' अपनी लोकप्रियता एवं जनमानस की व्यापक अभिरुचि के कारण दसवें प्रकाशन के रूप में प्रकाशित होकर पाठकों तक हाथों-हाथ पहुँचा है।

@ मूकमाटी का लेखन शुरू हुआ पिसनहारी की मड़िया में 25 अप्रैल 1984 को एवं सिद्धक्षेत्र नैनागिरजी में 11 फरवरी 1987 को पूर्ण हुआ !!

विद्याधर से विद्यासागर



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