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17/02/25 अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय का स्वरूप भाग-2 || Mumukshu Pathshala by Himanshu Jain

Punam Jain 60 lượt xem 1 week ago
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#अर्थपर्यायऔरव्यंजनपर्यायकास्वरूप

*पर्याय*
गुणों के विकार अर्थात परिणमन को पर्याय कहते है।
अर्थ व्यंजन
गुण द्रव्य गुण द्रव्य
स्वभाव-वि॰/स्वभाव-वि॰ स्वभाव-वि॰/स्वभाव - वि॰
1.स्वभाव गुण अर्थ पर्याय 1.स्वभाव द्रव्य अर्थ पर्याय
2.स्व॰ गुण व्यंजन पर्याय 2.स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय
3.विभाव गुण अर्थ पर्याय 3.विभाव द्रव्य अर्थ पर्याय
4.विभाव गुण व्यंजन पर्याय 4.विभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय

*जीव व पुद्गल द्रवों में विभाव पर्याय होती है*


° अर्थ पर्याय सूक्ष्म, क्षणवर्ती, केवलज्ञानगम्य, वचनागोचर, अगुरुलघुगुणमय षटगुणी हानि-वृद्धि सहित क्षद्मस्त वे ज्ञान का विषय नही होती।

• व्यंजन पर्याय स्थूल, मिलीजुली चिरकालमय, वचन-गोचर, मूर्तिक अल्पज्ञ के ज्ञान का विषय होती है। इसे स्वाप्रापेक्ष पर्याय भी कहते है, व्यंजन का एक अर्थ आकार भी होता है।

• समस्त द्रव्यों में पाए जाने वाले अगुरुलघुत्व गुण के अन्नत अविभागी प्रतिच्छेदो में होने वाली निरतंर षटहानि षटवृद्धि रूप परिणमन को स्वभाव गुण द्रव्य अर्थ पर्याय कहते है।

• मिथ्यात्व, कषाय, राग, द्वेष, पुण्य व पाप ये 6 द्रव्य गुण विभाव अर्थ पर्याय है।

• नर नारक आदि रूप 4 गति 84 लाख योनियों रूप जीव की विभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय है।

• आन्तिम शरीर से कुछ कम जो किंचित न्यूनाकार सिद्ध अवस्था है वह जीव की स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय है।

• मति-श्रुत-अवधि-मनपर्यायः कुज्ञानादि जीव के ज्ञान गुण की विभाव गुण व्यंजन पर्याय है।

• आनन्तज्ञान-अन्नतदर्शन अन्नतसुख-अन्नतवीर्य इन अन्नत चतुष्टयमय रूप जीव की स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय है।

• कर्मोपाधि सहित पर्यायो को विभाव व कर्मोपाधि रहित पर्यायो को स्वभाव पर्याय कहते है।

संकलन प्रमाणः- नयचक्र, प्रवचनसार जी, नियमसार जी, पंचास्तिकाय जी, वसुनन्दी श्रवाकचार जी, अलाप पद्दति।

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