MENU

Fun & Interesting

गढ़वाली चक्रव्यूह(सम्पूर्ण)लेखक निर्दे०-आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल रचना-1994,प्रथम प्रस्तुति -25-2-95

Aacharya Krishnanand Nautiyal Official 6,657 lượt xem 2 years ago
Video Not Working? Fix It Now

*गढ़वाली चक्रव्यूह के बारे में*

*अष्टादश पुराणानि धर्मशास्त्राणि सर्वश:*।
*वेदा:साङ्गास्तथैकत्र भारती चैकत: स्थितम्*।।

*यथा समुद्रो भगवान् यथा मेरुर्महान् गिरि:।*
*उभौ ख्यातौ रत्ननिधि: तथा भारत मुच्यते।।*

*इदं भारतमाख्यानं य: पठेत् सुसमाहित:।*
*स गच्छेत् परमां सिद्धिमिति मे नास्ति संशय:।।*
( *स्वर्गारोहण पर्व*)

🙏उत्तराखण्ड की केदारघाटी में स्थित गांवों की लोकपरम्परा में रचे-बसे पाण्डवों के अनुष्ठानिक एवं अर्द्धानुष्ठानिक कार्यक्रम आज भी घाटी के अलग-अलग गांवों में लगभग प्रति वर्ष आयोजित होते हैं। इन्हीं कार्यक्रमों के मध्य सम्पादित होने वाली व्यूह- रचनायें, केदारघाटी की लोक- संस्कृति को भव्य एवं अलौकिक स्वरूप प्रदान करती हैं। शास्त्रीय और ज्यामितीय विधि से निर्मित होने वाली इन व्यूह रचनाओं में महाभारत युद्ध के तेरहवें दिन आचार्य द्रोण द्वारा रचित चक्रव्यूह सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय है। मान्यता है कि:--
सात द्वारों से युक्त चक्रव्यूह की रचना यूं तो किसी पाण्डव योद्धा को बन्दी बनाने के उद्देश्य से की गई थी,परन्तु संस्प्तकों के साथ आकाशीय युद्ध में पहुंच हुए अर्जुन के स्थान पर आज उनके पुत्र सोलह वर्षीय अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदन की जिद्द करते हैं। सातवें द्वार तक अपूर्व पराक्रम के साथ युद्ध करते हुए अभिमन्यु का सात कौरव महारथी छल-कपट से वध कर देते हैं और जयद्रथ मृत अभिमन्यु के शरीर पर लात का प्रहार भी करते हैं। इस घटनाक्रम के बारे में सुनकर अर्जुन कल का सूरज अस्त होने से पूर्व जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा करते हैं।
गांवों के पंचायती चौक में पण्डवाणी शैली में मंचित होने वाली इन व्यूह रचनाओं पर बीच के कालखण्ड में नौटंकी का प्रभाव पड़ा और उपर्युक्त महानाट्य दोहा, चौपाई आदि धुनों पर अवधी और ब्रज भाषा में पारसी रंगमंच की तरह गांवों के सीढ़ीनुमा खेतों में मंचित होने लगे। इससे इस भव्य एवं अलौकिक सांस्कृतिक विरासत पर सांस्कृतिक पलायन का खतरा मण्डराने लगा था।
वर्ष 1994-95 में अखिल गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा आयोजित कौथिक-95 जो कि उत्तराखण्ड राज्यआंदोलनकारियों के लिए समर्पित था, उस आयोजन में मेरे द्वारा प्रथम बार इसके गढ़वाली स्वरूप को कण्डारा की टीम के सहयोग से परेड ग्राउंड दे दूं में मंचित किया गया था,जिसे उत्तराखण्ड राज्य की भावना से ओत-प्रोत जनता ने बहुत प्यार और सम्मान प्रदान किया। 2000-2001 में इस महानाट्य को आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल, स्व०श्री सर्वेश्वर दत्त काण्डपाल एवं डा० दाताराम पुरोहित जी ने मिलकर सुन्दर रंगमंचीय स्वरूप प्रदान किया था। परन्तु मेरे द्वारा रचित महानाट्य के मूल अंश आज भी मेरे मंचन में विद्यमान हैं। तो आइए, देखिए, गढ़वाली "चक्रव्यूह"।

Comment