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वीडियो जानकारी: 08.03.24, महाशिवरात्रि विशेष सत्र, ग्रेटर नॉएडा
Title : निर्वाण षट्कम, महाशिवरात्रि || आचार्य प्रशांत (2024)
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
4:22 - निर्वाण षट्कम से शिवत्व के मूल की व्याख्या
11:11 - मनुष्य का एकमात्र कर्तव्य
23:56 - वैराग्य क्या है?
29:04 - आचार्य जी ने श्रीमद्भगवद्गीता को ही क्यों चुना?
29:33 - समापन
विवरण:
इस वीडियो में, आचार्य जी महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवत्व और आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर चर्चा कर रहे हैं। वे बताते हैं कि शिवत्व का अर्थ है अपनी सीमाओं को पार करना और चेतना का चुनाव करना। महाशिवरात्रि केवल एक दिन नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जब व्यक्ति अपनी भौतिक बाधाओं को पार कर आत्मा की शुद्धता की ओर बढ़ता है।
आचार्य जी ने बताया कि मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को महत्व नहीं देना चाहिए, बल्कि शुद्ध प्रेम को प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रेम ही एकमात्र कर्तव्य है और यदि हम अपने प्रति प्रेम को प्राथमिकता देते हैं, तो अन्य सभी कर्तव्य अपने आप पूरे हो जाते हैं।
आचार्य जी ने निर्वाण षट्कम के श्लोकों का उल्लेख किया, जो यह बताते हैं कि हमें उन चीजों को नकारना चाहिए जो हमारे वास्तविक स्वरूप से हमें दूर करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भौतिक वस्तुओं को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, क्योंकि ये केवल साधन हैं, जबकि असली मंजिल आत्मा की शुद्धता है।
प्रसंग:
~ शिव का वास्तविक अर्थ क्या है?
~ निराकार और साकार शिव से क्या तात्पर्य है?
~ शिव-शक्ति से हम क्या समझ सकते हैं?
~ शिव क्या हैं? शिवत्व क्या है?
~ कौन है जो शिव के नाम पर पूरी दुनिया में झूठ फैला रहा है?
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योमभूमि- र्न तेजो न वायुः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः न वा सप्तधातु- र्न वा पञ्चकोशाः।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायू चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम् न मंत्रो न तीर्थ न वेदा न यज्ञाः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
संगीत: मिलिंद दाते
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