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"सिर्फ 7 दिन की शादी और ₹40 लाख का भरण-पोषण! क्या ये नाइंसाफी है या कानून का सही इस्तेमाल? सुप्रीम कोर्ट के एक हैरान कर देने वाले फैसले ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है। नमस्कार, मैं हूं एडवोकेट डॉ. अजय कुमार पांडे, और आप देख रहे हैं 4C Supreme Law Channel, जहां हम आपको लाते हैं कानूनी मामलों की सच्चाई, बिना किसी पक्षपात के।"
"तो आइए, जानते हैं इस चौंकाने वाले केस की कहानी। एक पति, जिसने अपनी पत्नी के साथ सिर्फ 7 दिन बिताए, अब कोर्ट के आदेश पर उसे ₹40 लाख का भरण-पोषण देना होगा। ये मामला केवल पैसे का नहीं, बल्कि पुरुषों के अधिकार, महिलाओं के सशक्तिकरण और हमारे न्याय प्रणाली की जटिलताओं का भी है।"
"मामला शुरू हुआ दिल्ली के एक युवा दंपति से। शादी तो धूमधाम से हुई, लेकिन पति-पत्नी के बीच 7 दिनों में ही अनबन हो गई। पत्नी ने पति पर घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया। और मामला पहुंचा कोर्ट।"
"इस केस में पत्नी ने दावा किया कि शादी के बाद पति ने उसे छोड़ दिया और उसे भरण-पोषण के लिए संघर्ष करना पड़ा। पत्नी ने ₹1 करोड़ के भरण-पोषण की मांग की। पति ने दावा किया कि ये सब एक साजिश है।"
"सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को ₹40 लाख का भरण-पोषण दे। कोर्ट ने माना कि पत्नी को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है, चाहे शादी कितने भी दिन की हो। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये फैसला पुरुषों के अधिकारों का उल्लंघन है?"
"अब सवाल ये उठता है कि क्या 7 दिन की शादी में ₹40 लाख का भरण-पोषण न्यायोचित है? क्या पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी हो रही है? आइए जानते हैं कुछ अहम कानूनी पहलू।"
कानूनी बिंदु
भरण-पोषण का उद्देश्य:
"कानून के तहत भरण-पोषण का मकसद है कि पत्नी का जीवन स्तर शादी से पहले जैसा या उससे बेहतर हो।"
धारा 125, सीआरपीसी:
"इस धारा के तहत पत्नी, बच्चे, और माता-पिता भरण-पोषण का हकदार हो सकते हैं। लेकिन इसमें भी न्यायालय को पति की आर्थिक स्थिति और पत्नी की आवश्यकता का ध्यान रखना होता है।"
क्या सात दिन की शादी पर्याप्त है?
"कानूनी दृष्टिकोण से, शादी की अवधि का भरण-पोषण पर प्रभाव नहीं पड़ता। यह पति की जिम्मेदारी पर आधारित है।"
"आम जनता की राय जानें तो लोग बंटे हुए हैं। कुछ का कहना है कि ये फैसला सही है, जबकि कुछ इसे पुरुषों के साथ नाइंसाफी मानते हैं।"
"तो इस फैसले से क्या सीखा जा सकता है? ये मामला केवल एक पति-पत्नी के विवाद का नहीं, बल्कि हमारे समाज के बदलते मूल्यों और कानून की व्याख्या का भी है।"
मेरे विचार
संतुलन जरूरी है:
"भरण-पोषण का आदेश देते समय कोर्ट को दोनों पक्षों की स्थिति और सच्चाई को ध्यान में रखना चाहिए।"
पुरुषों के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं:
"ऐसे मामलों में फर्जी आरोपों को पहचानने और पुरुषों को न्याय दिलाने की भी आवश्यकता है।"
कानून का दुरुपयोग रोकें:
"जिनके लिए भरण-पोषण का प्रावधान बनाया गया था, उनका सही लाभ सुनिश्चित होना चाहिए।"
"तो दोस्तों, ये था हमारा आज का सेगमेंट। आपको क्या लगता है—क्या ये फैसला सही है, या इसमें सुधार की जरूरत है? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताएं। और हां, अगर आप ऐसे कानूनी मुद्दों पर अपनी जानकारी बढ़ाना चाहते हैं, तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाना न भूलें।"
"कानून समझिए, सच के साथ खड़े रहिए।
4C Supreme Law Channel - आपका कानूनी साथी।"
Advocate Dr. Ajay Kummar Pandey Tel: 9818320572
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President, Supreme Court Life Member Bar Association
Advocate & Consultant, Supreme Court of India & High Courts
4CSupreme Law International, Delhi, NCR. Mumbai & Dubai
Director, International Council of Jurists, London
Member, World Independent Lawyers League (WILL)
Veteran Journalist
National General Secretary & Spokesperson, Lok Janshakti Party (Ram Vilas), NDA Govt led by PM Modi.
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