हमें तरक्की से कोई दिक्कत नही है।हम इस सीरीज के जरिए अपने बीते हुए दिनों को याद करते हैं।किसी का दिल दुखाने का हमारा कोई मकसद नही है।
Song Name - 70 Ka Haryana 4
Writer- Foji Tehlan
Music - Satish Sehgal (Kokila)
Singer - Nitin Trikha
Artist -Mukesh Tehlan, Baljeet Puniya ,Ramesh Majariya ,Sunny Dahiya ,JD Ballu ,Pappu Chacha, Rishipal ,Ashish Dahiya, Vinay, Sonu Tehlan, Jassu Pahlwan, Om Chhikara, Jagat Kharb, Baljeet Nain, Malkeet Fhogat, Yasvir dahiya, Raju, Sahil, Satte, Mahabir Singh Dahiya, Dharmender Thekedar, Chand Nambardar, Angoore Ram, Suresh Doctor, Happy Dahiya, Deepak, Vansh, Ankush, Arpit, Chintu, Akshit,Vicky Kangda,Foji Tehlan,Geetu Par,i Soniya, Santosh Kokil, Vanshika, Sharmila, Bala Devi, Geeta Dev,i Bimla Devi, Dropdi, Rajesh Devi, Dipi, Jantri Devi, Shanti, Santosh, Ompati, Nirmla, Sunita, Krishana Devi, Pareeti,
DOP-Ramesh Majriya
Director -Ramesh Majriya/Ramikesh Tehlan
Edit -Lucky Kajla
Makeup- Sandeep Kapoor
Special Thanks- Sukhvir singh Bahalmba, Samadar Singh (fame sandal), Ramehar Mahla, Kuldeep Foji, Sagar Khokhar, Sanjeev Tehlan(Deshi Tehlan) & All Barona Gaam
Producer - Rajesh Mor
Label - Mor Music Company (7053190079)
Audio Studio - Mor Music Audio Recording Studio
Production House - Mor Digital Recording
Digital Managment & Promotions
Apex International Media
Insta: http://www.instagram.com/iamdeepakkamra
Callertune............
संस्कृति म्हारी बैठी शुबकै
क्युकर चुप कराऊँ मैं
70 आळे संस्कार बता
आज कड़े तै ल्याऊँ मैं
पड़ दादा के सिर पै खंडका
ताज बराबर साजै था
भाईचारा जुड़ ज्या था
जब उसका होका बाजै था
ना वे पड़ दादा,ना वे खंडके
भोत घणा पछताऊँ मैं
पड़ दादी के मुंह की सळवट
उसका तजुर्बा बतावैं थी
काकी ताई दादी नै जब
छिकमा प्यार जतावैं थी
ना वे पड़ दादी,ना वे तजुर्बे
बैठया नीर बहाऊँ मैं
दादा आळी मूछयां की जब
शर्म भोत घणी भारी थी
70 आळे दौर में भाईयों
सुथरी सभ्यता म्हारी थी
इब ना वे दादा,ना सुथरी सभ्यता
किस तै दुख बताऊं मैं
चुपाड़ तै भी ओहला करकै नै
दादी चाल्या करती रै
भोत घणे दिन जिंदा राखगी
वा म्हारी संस्कृति रै
इब ना वे दादी,ना वे ओहले
क्युकर कल्चर बचाऊँ मैं
घर बिना नेग के बाबू-ताऊ
बड़ण तै पहल्यां खासैं थे
ना बदनामी के कीचड़ में
दादा की पगड़ी धासैं थे
इब ना वे बाबू,ना वा खांसी
देख देख शरमाऊं मैं
थे काम घणे और साधन थोड़े
माँ की रेल बणी रह थी
रंगरूट की तरियां म्हारी माँ जब
आठूं पहर तणी रह थी
इब ना वे माँ,ना काम उतणे रै
बैठया बैठया लखाऊं मैं
जब बूआ,भतीजे-भतीजीयां के
गाढ़े लाड करया करती
पीहर आळे रूख देखकै
करड़ी चा में भरया करती
इब ना वे बूआ,ना वे रूख पीहर में
भारया दुख जताऊं मैं
फूफा का घणा रूतबा था जब
टूटया मरोड़ में रहता था
ब्याह-शादी में किस्से की भी
बात नही वो सहता था
इब ना वे फूफा,ना वा मरोड़
देख सहम सा जाऊं मैं
माँ जाई माँ जाया नै जब
सूळीयां पै ना टांगैं थी
कर दियो बस भात और छूछक
हक नही वे मांगैं थी
इब ना वे भाण,ना भात और छूछक
सोच सोच घबराऊँ मैं
सास सुसर जै छो में आते तै
पड़ ज्यावैं थे बटेऊ नर्म
आँख मिलाकै ना बतळावैं थे
बरत्या करते वे पूरी शर्म
इब ना वे बटेऊ,ना वा शर्म
इस फ़िक्र में टेम बिताऊं मैं
जब माँ जाए भाईयां में लोगों
बढ़िया सलूक होया करता
न्यारी न्यारी थाळी नही थी
साझा टूक होया करता
इब ना वे भाई,ना वे सलूक
क्युकर सुक्र मनाऊं मैं
म्हारी माँ के बर्गी होया करैं थी
देवर नै वे भाभी रै
हांसी-मस्क्री पूरी थी पर
रहवै थी हिसाबी रै
इब ना वे भावज,ना वे देवर
वे रिश्ते ढूंढ़ ना पाऊं मैं
राह चलती बदनामी जब ना
बेटे लिया करते रै
चरित्र के कती छेलड़े ना
छोरे कीया करते रै
इब ना वे बेटे,ना वे चरित्र
हाल देख शरमाऊं मैं
बाबुल की आबरू के ना लाडो
खिंडाया करती रोड़े रै
तहलान नही हांडैं थी भजाएं
शैतानी दिमाक के घोड़े रै
इब ना वे बेटी,ना मर्यादा
क्युकर आँख मिलाऊँ मैं
एक विद्वान बणे 36 में
समसपुर के जमाई रै
जसौर खेड़ी आळे नै भी
पकड़ी उड़े की राही रै
गुरू जाट मेहर सिंह हूक ऊठैं
जब भी बरोणै जाऊं मैं
70 आळे संस्कार बता
आज कड़े तै ल्याऊं मैं