MENU

Fun & Interesting

88 हज़ार ऋषियों की तपोस्थली, नैमिषारण्य धाम दर्शन | सीतापुर उत्तरप्रदेश | 4K | दर्शन 🙏

Tilak 78,981 2 years ago
Video Not Working? Fix It Now

श्रेय: संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल लेखक - रमन द्विवेदी भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और बहुत बहुत अभिनन्दन! भक्तों आज हम अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से एक ऐसे अद्वितीय परम धाम की यात्रा करवाने जा रहे हैं जो परम तपस्वी शौनक जी सहित अट्ठासी हज़ार ऋषियों की तपस्थली ही नहीं बल्कि भारत की सनातन संस्कृति के उद्गम स्थल भी है। जी हाँ भक्तों हमारे कार्यक्रम दर्शन का यह एपिसोड भी परम धाम नैमिषारण्य धाम को समर्पित है! धाम के बारे में: भक्तों नैमिषारण्य धाम उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर स्थित है। यह तीर्थ सीतापुर रेलवे स्टेशन से लगभग डेढ़ किमी दूर है। चक्रतीर्थ में एक दिव्य सरोवर के साथ साथ कई प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर हैं। कहा जाता है कि चक्रतीर्थ पहुँच कर स्नान, ध्यान और दर्शन पूजन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। नैमिषारण्य की पौराणिक कथा: भक्तों नैमिषारण्य देवभाषा संस्कृत के नैमिष और अरण्य शब्दों से मिलकर बना है। नैमिष का अर्थ होता है पलक झपकते ही और अरण्य का तात्पर्य है वन या जंगल। वाराह पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार आदिकाल में यह स्थान एक घनघोर जंगल था। अतः यह स्थान ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की तपस्थली हुआ करता था। लेकिन अत्याचारी दुष्ट राक्षस ऋषियों की तपस्या में न केवल विघ्न डालते थे अपितु ऋषियों की हत्या भी कर देते थे। तब ऋषियों ने भगवान् नारायण श्री हरि विष्णु से अपनी रक्षा की गुहार लगाई। ऋषियों की गुहार सुनकर श्री हरि ने, अपने सुदर्शन चक्र से निमिष मात्र अर्थात पलक झपकते ही दुश राक्षसों का संहार कर दिया। तब से इस धाम को नैमिषारण्य कहा जाने लगा। मनु शतरूपा की तपस्थली: व्यास गद्दी के पास उसी के पास में मनु और शतरूपा के चबूतरे भी बने हुए हैं। कहा जाता है कि मानव जीवन की उत्पत्ति हेतु मनु-शतरूपा ने इसी स्थान पर 23 हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की और धरा धाम में सर्व प्रथम मैथुन द्वारा मानवीय सृष्टि सृजन करने का गौरव प्राप्त किया। जिनसे सम्पूर्ण मानव जाति का प्रादुर्भाव हुआ। मनुमंदिर में ब्रह्मपद, विष्णुपद और शिवपद के नाम से तीन चरणचिन्ह बने हैं जिन्हें क्रमशः इलेक्ट्रोन, प्रोटोन और न्यूट्रोन का प्रतीक माना जाता है। ललिता देवी मंदिर: भक्तों ललिता देवी मंदिर नैमिषारण्य धाम का प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर को शक्तिपीठ मान्यता प्राप्त है। क्योंकि यहां माता सती का हृदय गिरा था। इस मंदिर में साल भर भक्तो का तांता लगा रहता है, ललिता देवी का मंदिर बहुत पुराना मंदिर है कुछ लोग इस ललिता देवी मन्दिर को लिंगधारिणी मंदिर भी कहते है, इस मन्दिर का आधार काफी सुन्दर बना हुआ है। इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि जब देवताओं और दैत्यों का युद्ध हुआ। उस युद्ध में देवता, दैत्यों से पराजित हो गए। तब उन्होंने ब्रह्मा जी से अपनी रक्षा की गुहार लगाई। ब्रह्मा जी ने देवताओं को देवी की आराधना करने का आदेश दिया। ब्रह्मा जी के आदेश पर देवताओं ने यहाँ 80 वर्षों तक यज्ञ अनुष्ठान करते हुए माँ से प्रकट होकर असुरों का विनाश करने की प्रार्थना की। देवताओं के आग्रह को स्वीकार कर वहां ललिता देवी प्रकट हुई और दैत्यों का संहार किया। तत्पश्चात देवताओं ने माँ से यहीं निवास करने का निवेदन किया। देवताओं के आग्रह का ही परिणाम है कि माँ ललिता आज भी यहां विराजमान होकर अपने भक्तों कल्याण कर रही हैं। दधीचि की तपस्थली: भक्तों नैमिषारण्य की तपो भूमि पर ही ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपनी अस्थियां देवताओं को दान में दी थीं। उन्ही अस्थियों से बने वज्र से देवराज इंद्र ने अत्यंत अत्याचारी राक्षस वृतासुर का वध करने में सफलता पाई थी थी। पंचप्रयाग सरोवर: भक्तों नैमिषारण्य तीर्थ में ललिता मंदिर के समीप ही एक छोटा सा पवित्र कुंड है। इस पवित्र कुंड को पंचप्रयाग सरोवर कहा जाता है। श्रद्धालु गण इस पवित्र कुंड के जल में स्नान और आचमन करते है। पञ्चप्रयाग सरोवर के अक्षयवट नाम का एक वटवृक्ष हैं बताया जाता कि ये वटवृक्ष पांच हजार निन्न्यानवे वर्ष पुराना है। माना जाता है कि जो इस पेड़ के नीचे योग करता है वह असाध्य रोग से छुटकारा पा सकता है। अट्ठासी हज़ार ऋषियों की तपस्थली और यज्ञस्थली: भक्तों व्यास गद्दी के पास ही अट्ठासी हजार ऋषियों की तपस्थली है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात ऋषि मुनि कलियुग के कलुष और दुष्प्रभावों से चिंतित होकर शौनक जी के साथ 88 हजार ऋषियो ने इसी स्थान पर तप किया था। और शौनक जी के आग्रह पर जहाँ महर्षि लोमहर्षण जी के सुपुत्र परम तपस्वी सौति उग्रश्रवा अर्थात सूत जी ने अट्ठासी हजार ऋषियों को अष्टादश पुराणों की कथा सुनाई थी। छोटी परिक्रमा: भक्तों यदि कोई श्रद्धालु 84 कोस की परिक्रमा करने में सक्षम नहीं होता है तो वह सवा कोस की परिक्रमा कर, परिक्रमा का भी पूरा फल प्राप्त कर सकता है। छोटी परिक्रमा में चक्रतीर्थ, भूतेश्वरनाथ, सूतगद्दी, श्रीपरमहंस, क्षेमकाया, भगवती देवी, ललिता देवी, पंच-प्रयाग, जानकी कुण्ड, काशी तीर्थ, अन्नपूर्णा, विश्वनाथ, चित्रगुप्त, सप्तर्षिटीला, व्यास गद्दी, मनु शतरूपा स्थल, वल्लभाचर्यजी की बैठक, ब्रह्म, गंगोत्री पुष्कर, दशाश्वमेध घाट, हनुमान गढ़ी, पञ्च पाण्डव, यज्ञवराह कूप, नरसिंह मंदिर, रामानुज कोट और जगन्नाथ मंदिर आदि स्थलों के दर्शन होते हैं। Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. #devotional #hinduism #naimisharanyadham #temple #travel #vlogs #uttarpradesh #सनातनधर्म

Comment