यह कविता सीता स्वयंवर का दृष्टांत है जिसमें राम शिव धनुष पीनाक को तोड़ देते हैं और उसके बाद परशुराम जी वहां आते हैं और लक्ष्मण परशुराम जी का संवाद होता