स्कन्दपुराण के मानसखंड में कहा गया है कि कौशिकी और शाल्मली जो वर्तमान में (कोशी) और (सुयाल) के नाम से जानी जाती है इस दोनों नदियों के बीच में एक पावन पर्वत स्थित है। और वह पर्वत अल्मोड़ा नगर का पर्वत है। दोस्तों यह कहा जाता है कि इस पर्वत पर भगवन विष्णु का निवास था और कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि विष्णु का कूर्मावतार इसी पर्वत पर हुआ था।
एक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि अल्मोड़ा की माँ कौशिका देवी ने शुंभ और निशुंभ नामक दानवों को इसी क्षेत्र में मारा था। दोस्तों अल्मोड़ा के पर्वत की बहुत सी कहानियाँ हैं, लेकिन एक बात बिलकुल सत्य है कि प्राचनी युग से ही इस स्थान का धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व रहा है।
नीय परंपरा के अनुसार, तिवारी अल्मोड़ा के सबसे पहले निवासियों में थे, जो कटारमल के सूर्य मंदिर में बर्तनों की सफाई के लिए रोज़ एक प्रकार की वनस्पति की आपूर्ति करते थे। प्राचीन ग्रंथों में जैसे विष्णु पुराण और स्कन्दपुराण में इस क्षेत्र में मानव बस्तियों के होने का वर्णन है।
हस्तिनापुर शाही परिवार के कौरव और पांडव मैदानी इलाकों के अगले महत्वपूर्ण राजकुमार थे, जिन्होंने इन हिस्सों पर विजय प्राप्त कर इन्हें प्रभावित किया था। महाभारत युद्ध के बाद, यहां हस्तिनापुर के राजाओं का शासन कुछ समय तक बना रहा, हालांकि उनका अधिकार नाममात्र से अधिक नहीं था। यहाँ के जो वास्तविक शासक वो स्थानीय ही थे, जिनमें से कुनिंदा (या कुलिंडा) प्रमुख थे। खस अन्य प्राचीन लोग थे, जो प्रारंभिक आर्यन लोगों से संबंधित थे और उन दिनों व्यापक रूप से बिखरे हुए थे। उन्होंने ही इस क्षेत्र को खसदेश या खसमंडल का नाम दिया।
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न्यायकारी गोलू देवता की लोक कथा II Nyaykari golu devta ki lok katha
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