'अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है।महन्त जी वर्ग विशेष से सम्बन्धित हैं। वह नाटक के आरम्भ और फिर अन्त में मंच पर दिखायी देते हैं और दर्शक/पाठक पर अपनी बुद्धि और व्यवहार कुशलता की छाप छोड़ जाते हैं। उनका चरित्र जीवन के बहुत निकट है। उनका चारित्रिक विकास यथार्थ के बहुत निकट है। यद्यपि लेखक ने कहीं भी बलपूर्वक उनके चरित्र का विकास दिखाने का प्रयत्न नहीं किया तो वह सभी की बुद्धि को प्रभावित करने में समर्थ सिद्ध हुए है और चौपट्ट राजा को अपनी बुद्धि कौशल से फांसी के तख्ते पर पहुंचा कर सभी का मन जीत लेते हैं। इसका मतलब है कि जब किसी जगह का शासक मूर्ख और लापरवाह होता है, तो वहां की प्रजा भी मूर्ख और लापरवाह हो जाती है।
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