महाभारत का योद्धा - अश्वत्थामा || Aswathama || द्रोण पुत्र अश्वत्थामा | Mahabharat || Maha Warrior
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अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था उसका जन्म महाभारत काल में यानि द्वापरयुग में हुआ था. द्रोणाचार्य को संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तो वे भटकते-भटकते हिमाचल की वादियों में पहुँच गए. वहां पर उन्होंने तेपेश्वर महादेव नामक स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना कर एक पुत्र की प्राप्ति की. कहा जाता है की अश्वत्थामा भगवान शिव का ही अंश था. अश्वत्थामा के सर पर एक मणि थी जो कि उसे किसी भी राक्षस, असुर, मानव, जानवर, देव के सामने निडर बनाए रखती थी. अश्वत्थामा के सर की मणि उसके जन्म से ही थी.
अश्वत्थामा, महाभारत के महान योद्धाओं में से एक था. जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी कहलाता था. लेकिन अश्वत्थामा ने ये गलती की कि उन्होंने कौरवो का साथ दिया क्योंकि उनके पिता द्रोणाचार्य ने भी कौरवो का साथ दिया था. द्रोणाचार्य ने ये सोचकर कौरवो का साथ दिया था कि राज्य से निष्ठा रखते हुए वे राज्य के खिलाफ लड़ नहीं सकते थे.
भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा की आप गुरु द्रोण को कहिये की अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया जिससे गुरुदेव शोक में डूबकर अपने हथियार त्याग देंगे. युधिष्ठिर ने कहा की धर्म की रक्षा के लिए मैं गुरुदेव के खिलाफ छ्ल करने के लिए भी तैयार हूँ. कृष्ण भीम एक हाथी की और इशारा करते हुए कहा की उस हाथी का नाम तो बताइए मजले भैया. भीम कृष्ण जी की युक्ति समझ गए और उस हाथी को मार कर गुरु द्रोण के सामने चले गए और कहने लगे की गुरुवर मैंने अश्वत्थामा को मार डाला पर द्रोणाचार्य को भरोसा नहीं हुआ उन्होंने अपने सारथि को कहा की रथ को युधिष्ठिर की तरफ ले चलो.
युधिष्ठिर के रथ के सामने पहुँचते ही उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि क्या ये सत्य है कि अश्वत्थामा की मृत्यु हो चुकी है. तब युधिष्ठिर ने कहा कि हाँ अश्वत्थामा मारा गया परंतु हाथी. लेकिन जिस वक्त युधिष्ठिर ने कहा परन्तु हाथी उस समय कृष्ण ने शंखनाद कर दिया था जिससे गुरु द्रोण को लगा की अश्वत्थामा उनका पुत्र मारा गया इस तरह युधिष्ठिर के मुँह से झूठ नहीं निकला.
ये बात धर्मराज युधिष्ठिर के मुंह से सुनने के बाद द्रोणाचार्य शोक में डूबकर अपने सारे शस्त्र ज़मीन पर डाल दिये और शोक मनाने लगे शोक में डूबे हुए द्रोणाचार्ये को निहत्था पाकर द्रौपदी के भाई ध्रिश्टद्यूमन ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया.
पिता की मौत से अश्वत्थामा बहुत गुस्से में था. उसे पांडवो पर बहुत गुस्सा आ रहा था उसने महाभारत के युद्ध के बाद ठान लिया की वो पाँचों पांडवो को मार डालेगा. वो पांडवो के शिविर तक गया और द्रोपदी के बेटों को पांडव समझ कर मार दिया.जब द्रौपदी को ये बात पता चली तो उसने अर्जुन सहित सभी पांडवो को अस्वत्थामा को लाने को कहा अर्जुन ने कसम खाई थी की वो अस्वत्थामा को द्रौपदी के सामने ले जाकर उसे दंड देगा सभी पांडव कृष्ण जी के साथ अश्वत्थामा को लेने गए.
वहाँ पर अश्वत्थामा से छोटा सा युद्ध हुआ जिसमे अश्वत्थामा ने सभी पांडवो को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया. उसी समय अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र चला दिया ऋषि मुनियों के समझाने के बाद अर्जुन ने तो अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को ब्रम्हास्त्र वापस लेना नहीं आता था तो उसने ब्रम्हास्त्र अभिमन्यु की विधवा की कोख में पल रहे बच्चे को मारने के लिए चला दिया. उससे उसकी जान चली गयी. उसके बाद भगवान कृष्ण ने उसे श्राप दिया की वो 6000 सालों तक बेसहारा बनकर घूमेगा उसे कोई भोजन नहीं देगा और उसके सर से वो मणि ले ली.
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