MENU

Fun & Interesting

भाग्य और बुद्धि में मुकाबला अनमोल कहानी Bhagya aur buddhi mein mukabala

@Anmol kahaniyan 229 3 weeks ago
Video Not Working? Fix It Now

भाग्य और बुद्धि में मुकाबला अनमोल कहानी Bhagya aur buddhi mein mukabala भाग्य व बुद्धि का मुकाबला महात्मा गौतम बुद्ध अपने आश्रम में शिष्यों को हमेशा प्रवचन देते रहते थे। एक बार महात्मा गौतम बुद्ध शिष्यों को प्रवचन दे रहे थे। उन में से एक शिष्य ने" महात्मा गौतम मुझसे पूछा"गुरुदेव मनुष्य का भाग्य बड़ा है या बुद्धि? तब महात्मा गौतम बुद्ध ने उन सभी को इस कहानी के माध्यम से समझाया। एक दिन एक स्थान पर भाग्य व बुद्धि की मुलाकात हो गई। दोनों बैठकर आपस बातें करने लगे। बातें करते-करते उनमें बहस छिड़ गई। भाग्य ने कहा : ”मैं बड़ा हूं। अगर मैं साथ न दूं तो मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। मैं जिसका साथ देता हूं उसकी तो जिन्दगी ही बदल जाती है। उसके पास बुद्धि हो या न हो।” बुद्धि ने कहा : ”उसके बिना किसी का काम नहीं चल सकता। बुद्धि न हो तो केवल भाग्य से कुछ नहीं बनता।” आखिर उन दोनों ने फैसला किया कि खाली बहस करने की बजाय अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग करके देखते हैं। पता लग जाएगा कि कौन बड़ा है। वे दोनों एक किसान के पास गए। किसान बहुत गरीब था। अपनी झोपड़ी के बाहर बैठा अपनी किस्मत पर रो रहा था। भाग्य ने कहा : ”देखो, इस किसान के पास बुद्धि नहीं है। मैं इसका भाग्य बदलता हूं। यह खुशहाल और सुखी और धनी हो जाएगा। तुम्हारी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।” किसान की झोपड़ी के पास ही उसका एकमात्र खेत था। उसमें उस किसान ने ज्वार बो रखी थी। बालियां आ ही रही थी फसल की कटाई का समय था। उस किसान ने बालियों को निकट से देखा। बालियों में ज्वार के स्थान पर भाग्य के प्रताप से मोती लगे थे। बुद्धिहीन किसान ने अपना माथा पीटा : ”अरे इस बार तो सत्यानाश हो गया सब बर्बाद हो गया। ज्वार के स्थान पर ये कंकड़ , पत्थर से भला क्या उग आए हैं ?” वह रो ही रहा था कि उधर से उस राज्य का राजा और उनका मंत्री गुजरे। उन्होंने दूर से ही ज्वार की वह खेती देखी। मोतियों की चमक देखते ही पहचान गए। दोनों घोड़े से उतरे और नजदीक आकर देखा। वे तो सच में मोती थे। राजा और मंत्री दोनों एक साथ बोले कि यह कितना धनी किसान है जिसके खेत में मोती ही मोती उगते हैं। मंत्री ने किसान से कहा : ”भाई, हम एक बाली तोड़कर ले जाएँ ?” किसान बोला : “एक क्यों सौ पचास उखाड़ लो। पत्थर ही पत्थर तो लगे हैं इनमें।” राजा ने मंत्री को कोहनी मारकर कान में कहा : ”देखो, कितना विनम्र है यह। अपने मोतियों को पत्थर कह रहा है।” मंत्री ने कहा : और दिल भी विशाल है। हमने एक मांगा और यह सौ-पचास ले जाने के लिए कह रहा है।” वे दो बालियां तोड़कर ले गए। घोड़े पर बैठे राजा ने मोतियों को हाथ में तौलते हुए कहा : “मंत्री, हम राजकुमारी के लिए योग्य वर की तलाश कर रहे थे ना। दूर क्यों जाएं ? यह किसान जवान है, धनी है और कितना बड़ा दिल है इसका। मोतियों को पत्थर कहता है, क्या ख्याल हैं ?” मंत्री बोला : ”महाराज, आपने मेरे मुंह की बात छीन ली।” मंत्री घोडे से उतरकर किसान के पास गया। उसने किसान के हाथ पर एक अशर्फी रखकर कहा : ” नौजवान, हम तुम्हारा विवाह राजकुमारी से तय कर रहे हैं।” किसान घबराया : “नही…नहीं मालिक। मैं एक निर्धन किसान और…?।” मंत्री समझा कि विनम्रता के कारण ही वह ऐसा कह रहा है। उन्होंने उसकी पीठ थप थपाकर उसे चुप करा दिया। राजा के जाने के बाद किसान ने लोगों को बताया ।कि उसकी शादी राजकुमारी से तय हो गई है। सब हंसे सभी ने उस किसान का मजाक उड़ाया। एक ने कहा : ”अरे बेवकूफ, यह शायद तुझे मरवाने की चाल है। हम तो तेरे साथ नहीं चल सकते , कहीं हम भी न मारे जाएं। अकेले अपनी बारात लेकर जाना।” किसान को अकेले ही जाना पड़ा। राजा ने इसका बुरा नहीं माना। मंत्री ने उसे अपने घर ठहराया। वहीं से उसकी बारात गई और धूमधाम से राजकुमारी से उसकी शादी हो गई। शादी हो जाने के बाद राजा ने दामाद को महल का ही एक हिस्सा दे दिया। राजा को कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह दामाद को अपने पास ही रखना चाहता था ताकि राजसिंहासन भी बाद में उसे सौंप सके। राज परिवार की परम्परा के अनुसार राजकुमारी वधु के वेष में सज-धजकर खाना लेकर रात को अपने पति के कक्ष में गई। किसान ने इतनी सुन्दरता से सजी और आभूषणों से लदी कन्या सपने में भी नहीं देखी थी। वह डर गया। उसके मूर्ख दिमाग में अपनी दादी की बताई कहानी कौंध गई, जिसमें एक राक्षसी सुन्दरी का वेष बनाकर गहनों से सजी-धजी एक पुरुष को खा जाती थी। उस किसान ने सोचा कि यह भी कोई राक्षसी है जो उसे खाने के लिए आई है। वह उठा और राजकुमारी को धक्का देकर गिराता हुआ चिल्लाता बाहर की ओर भागा। भागता-भागता वह सीधे नदी किनारे पहुँचा और पानी में कूद गया। उसने सोचा कि राक्षसी का पति होकर जीने से अच्छा मर जाना होगा। राजकुमारी के अपमान की बात जान राजा आग बबूला हो गया। राजा के सिपाहियों ने किसान दूल्हे को डूबने से पहले ही बचा लिया। उधर राजा ने आदेश जारी कर दिया कि दूसरे दिन उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। बुद्धि ने भाग्य से कहा : ”देखा, तेरा भाग्यवान बुद्धि के बिना मारा जाने वाला है। अब देख मैं इसे कैसे बचाती हूं।” इतना कह बुद्धि ने किसान में प्रवेश किया। किसान को राजा के सामने पेश किया गया तो किसान बोला : ” महाराज, आप किस अपराध में मुझे मृत्युदंड देने चले हैं ? मेरे कुल में मान्यता है कि विवाह के पश्चात पहली रात को यदि वर वधु की जानकारी में कोई व्यक्ति नदी में डूब मरे तो वधू या विधवा जाती है या संतानहीन रह जाती है। जब मेरी पत्नी मेरे कक्ष में आई तो नदी की ओर से मुझे ‘बचाओ-बचाओ’ की आवाज सुनाई दी। मैं अपनी रानी पर किसी अनिष्ट की आशंका से ही काप उठा और उठकर डूबने वाले को बचाने के लिए भागा। आप मुझे कोई भी दंड दें, मैं अपनी पत्नी के लिए कुछ भी करूंगा।” महात्मा गौतम बुद्ध की शिक्षा सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा। बुद्धि के बिना मनुष्य कुछ नहीं कर सकता

Comment