गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'ब्रह्मराक्षस' में आत्म-शोध और आत्म-परिष्कार की कथा है. इस कविता में ब्रह्मराक्षस एक प्रतीक है, जो आधुनिक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. यह कविता अहंकार के खतरों और वर्जित ज्ञान की खोज के ख़िलाफ़ चेतावनी देती है।कविता में ब्रह्मराक्षस को एक शक्तिशाली और द्रोही प्राणी के रूप में दर्शाया गया है। ब्रह्मराक्षस एक ऐसा विद्वान था जो निषिद्ध ज्ञान में डूब गया और अपने स्वयं के गर्व और महत्वाकांक्षा से भस्म हो गया। ब्रह्मराक्षस अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है, लेकिन उसे लगता है कि वह कभी भी अपने पापों से मुक्त नहीं हो सकता। ब्रह्मराक्षस एक तामसिक इकाई के रूप में चित्रित किया गया है, जो निर्दोष लोगों का शिकार करता है।
कविता में शैक्षणिक जगत की गिरावट की चिन्ता की गई है। यह परित्यक्त सूनी बावड़ी विचार शून्यता की जकड़ में जाता हुआ समाज है।
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