रेवाड़ी के इतिहास में पीतल का अध्याय दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू के कारण जुड़ा। हेमू ने रेवाड़ी में पीतल की तोपें बनाने का काम शुरू किया था। उस समय पीतल की तोपें युद्ध जीतने की गारंटी मानी जाती थीं। रेवाड़ी की सीमा राजस्थान से सटी हुई है। स्वाभाविक है कि सूरज की तपन और धूल भरी आंधियां झेलते हुए, यहां पानी की भयंकर कमी हो जाती है...पानी की इसी कमी को पूरा करने के लिए तोपों से बचे-खुचे पीतल के टुकड़ों से तरह-तरह के पानी भरने के बरतन बनाए जाने लगे.... देखते ही देखते रेवाड़ी में बने पीतल के बरतन दूर-दूर तक जाने लगे।