ईश्वरीय न्याय – प्रेमचंद
प्रेमचंद की कहानी "ईश्वरीय न्याय" समाज में नैतिकता, सत्य और न्याय की महत्ता को दर्शाती है। यह कहानी मानव के कर्मों और उसके परिणामों पर प्रकाश डालती है, जिसमें यह संदेश निहित है कि ईश्वर का न्याय अटल होता है और कोई भी अन्याय लंबे समय तक नहीं टिक सकता।
कहानी का सारांश
कहानी एक निर्धन व्यक्ति की कथा है, जो समाज में ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चलता है, लेकिन बार-बार अन्याय का शिकार होता है। एक धनी एवं प्रभावशाली व्यक्ति अपनी ताकत और चालाकी से गरीबों का शोषण करता है, लेकिन उसे अपने कर्मों का अहसास नहीं होता।
कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आता है जब एक निर्दोष व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसा दिया जाता है और उसे न्याय मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती। समाज के प्रभावशाली लोग न्याय को अपने पक्ष में मोड़ने का हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन ईश्वर का न्याय सर्वोपरि होता है, और अंततः परिस्थितियाँ ऐसी बनती हैं कि अन्यायी व्यक्ति स्वयं अपने बुरे कर्मों के जाल में फंस जाता है।
प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि सांसारिक अदालतें कभी-कभी असफल हो सकती हैं, लेकिन ईश्वरीय न्याय हमेशा निष्पक्ष और सटीक होता है। यह कहानी बताती है कि लालच, छल और अन्याय करने वाला व्यक्ति भले ही कुछ समय तक सफल हो जाए, लेकिन अंततः उसे अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।
कहानी का संदेश
"ईश्वरीय न्याय" केवल एक कथा नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक शिक्षाप्रद संदेश है। यह हमें सिखाती है कि सत्य और न्याय की राह कठिन हो सकती है, लेकिन अंत में जीत सच्चाई की ही होती है। अन्याय, शोषण और अधर्म का अंत निश्चित है, और ईश्वर हर किसी के कर्मों का हिसाब अवश्य लेता है।
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