डरो मत काछब कूड़ी ए, साँवरिये री महिमा रूड़ी ए कलप मत काछब कूड़ी ए. रामैये री रीता रूड़ी ए भक्ति रा भेद भारी रे, लखे कोई संत मुरारी रे ॥ टेर।।
काछबो काछबी समंद में रैवता, होता हरि रा दास। राम नाम नित सुमिरता वारे, संत दरष री आस (प्यास) ।।
सन्तों ने आवत भालिया रे, जाय चरणा में पड़िया रे ।
सन्तों रे चरण पड़िया रे, पकड़ झोली में धरिया रे ।।१।।
सन्त जी किरपा करी रे, भक्तों ने लिया उठाय। डेरे पर जोगी आविया रे, हाण्डी दिवी चढाय।। पकड़ हाण्डी में घालिया रे, तले मे अगन जालिया रे ॥ २ ॥
मैं थाने बरजी सायबा, कहयो न मानी कन्त ।
मौत कसाई माथै आयो, अब आयो है अन्त ।।
पिया विश्वास थाने रें, नहिं एतबार म्हाने रे ।। ३ ।।
कैवे काछवो सुणरी काछबी, यूं तिरिया री जात मरणें री मन में धर लीनी, राख्योनहि बिस्वास ।
अबला ने नहिं सबूरी ऐ, आतो बात बिहूणी रे।।४।।
कैवे काछवी सुणरे काछबा, जातो रहयो जगदीश चारों कोनी आग लगाई, मेली झालों रे बीच।।
कठे थारो सारंग पाणी रे, मौतड़ी री आई निसाणी ए।।५।।
जलती ह्वे तो आजा पीठ पर, राखूंला थारा प्राण । निन्दा मत करो नाथ री, म्हारे कलेजे भाल ।।
साँवरियो आसी भारू ए, आपों ने उबारण सारू ए।। ६ ।।
खरण खरण आदण करे, काछब करे पुकार। जलतों ने उबारो म्हारा प्रभुजी, आतम रा आधार ।।
जगत में हो हांसी रे, पत थारोड़ी जासी रे।।७।।
उत्तर दिशा सूं उठी बादली, गहरा बाज्या बाय
तीन पूलों री झूपड़ी रे, उड़ी अकाशां जाय ।।
घर घर इन्दर गरजे रे, पोटा पाणी री बरसे रे।।८।।
तीन लोक रा नाथ कृष्ण जी, वेगी सुणी पुकार।
जलतों ने उबार हरि लीना, काछब रा करतार ।।
भणे भोजो जी बाणी रे, टीकम जी ने गाय बखाणी रे ।।९।।
रामचंद्र जी गोयल के भजन- डरो मत काछब
आशा है कि ये आपको पसंद आएगा।
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