बहुत सारे प्रवासी भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप पहुंचने की कोशिश में जुटे हुए हैं. यूरोपीय सरकारें इन लोगों को रोकने के लिए उत्तरी अफ़्रीकी देशों को करोड़ों यूरो दे रही हैं. इन देशों के सुरक्षाबलों से उम्मीद की जाती है कि वो प्रवासियों को रोकेंगे. फिर इसके गंभीर नतीजे होते हैं.
यूरोपीय संघ उत्तरी अफ़्रीकी सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण और उन्हें उपकरण देने पर पैसे ख़र्च कर रहा है, जिसका मक़सद यूरोप जा रहे प्रवासियों को भूमध्यसागरीय तट तक पहुंचने से पहले ही रोकना है. हालांकि, इसके चलते लोग भयानक कष्ट झेल रहे हैं, जिसे यूरोपीय जनता ने अब तक बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज़ किया है. इस फिल्म में एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल, जिसमें बायरिशर रुंडफ़ुंक, नीदरलैंड से लाइटहाउस रिपोर्ट्स, डेर श्पीगेल, वाशिंगटन पोस्ट, ले मोंद और एल पाइस शामिल हैं, उत्तरी अफ़्रीकी सुरक्षाबलों द्वारा प्रवासियों की संस्थागत गिरफ़्तारी और अपहरण का दस्तावेज़ीकरण करती है, जो कि यूरोपीय संघ द्वारा समर्थित और वित्तपोषित है. ये फ़िल्म दिखाती है कि हज़ारों प्रवासियों को दूरदराज़ इलाक़ों में ले जाया जाता है और बिना किसी सुरक्षा के उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है. जबकि EU प्रतिनिधि उत्तरी अफ़्रीकी देशों के साथ नए प्रवासन समझौते करते रहते हैं.
बायरिशर रुंडफ़ुंक, डॉयचे वेले, लाइटहाउस रिपोर्ट्स और नॉर्डडॉयचर रुंडफ़ुंक द्वारा इस साझा प्रोडक्शन के लिए रिपोर्टर लीबिया, मॉरिटैनिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया जैसे चुनौतीपूर्ण देशों में फ़िल्माने में सफल रहे. उन्होंने मिलिशियाओं की मदद से कई शॉकिंग फ़ुटेज हासिल किए. गुप्त रूप से प्रवासियों की गिरफ़्तारी और उन्हें भगाए जाने की रिकॉर्डिंग की और ज़िंदा बचे लोगों के इंटरव्यू लिए. वो रेगिस्तान में दर्जनों लोगों की खोज के गवाह बने.
उनका विस्तृत शोध ये सुबूत देता है कि यूरोपीय सरकारों ने लंबे वक्त से उत्तरी अफ़्रीकी रेगिस्तान के हालात से अवगत होते हुए भी व्यवस्थित रूप से मुंह मोड़े रखा है. साथ ही, ये फिल्म स्पष्ट करती है कि इस प्रवासन नीति के पीड़ित महज़ गुमनाम संख्याएं नहीं हैं, बल्कि वो इंसान हैं, जिनकी अपनी कहानियां हैं.
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