1. **गवरी नृत्य का परिचय**:
मेवाड़ क्षेत्र में किया जाने वाला गवरी नृत्य भील जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है। इसे विशेष रूप से सावन-भादो माह में किया जाता है।
2. **वाद्य यंत्र और नामकरण**:
इस नृत्य में मांदल और थाली के प्रयोग के कारण इसे राई नृत्य के नाम से भी जाना जाता है।
3. **केवल पुरुषों द्वारा प्रदर्शन**:
गवरी नृत्य को केवल पुरुष ही करते हैं।
4. **गवरी की विशिष्टता**:
वादन, संवाद, प्रस्तुतिकरण और लोक-संस्कृति के प्रतीकों में मेवाड़ की गवरी नृत्य कला निराली है।
5. **उद्भव कथा**:
गवरी का उद्भव शिव और भस्मासुर की कथा से माना जाता है।
6. **समारोह की अवधि**:
इसका आयोजन रक्षाबंधन के दूसरे दिन से शुरू होता है और सवा महीने तक चलता है।
7. **भील संस्कृति की प्रधानता**:
गवरी में भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है, जो आदिवासी जाति पर पौराणिक और सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है।
8. **नृत्य में पुरुष पात्र**:
गवरी नृत्य में केवल पुरुष पात्र होते हैं।
9. **प्रमुख खेल**:
इसके खेलों में नरसि मेहता, गणपति, खाडलिया भूत, काना-गुजरी, जोगी, लाखा बणजारा आदि के खेल होते हैं।
मेवाड़ का प्रसिद्ध गवरी नृत्य
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