गौस पाक और नान बाई का वाक़िया || Ghous e Azam Ki Karamat || Ghous Pak Ka Waqia
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अस्सलाम अलैकुम ,बिस्मिलाहिररहमानीर रहीम। शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है। प्यारे दोस्तों, ऐसे ही सच्चे और दिलचस्प वाक्य सुनने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें। प्यारे दोस्तों, आज की इस वीडियो में हम आपको पीराने पीर दस्तगीर महबूबे सुबहानी कुतबे रब्बानी हुजूर गौस आजम शद शेख अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्ला अलह और एक तंदूर वाले का ईमान और फरोज वाकया सुनाएंगे, जिसका आड़ा हुजूर गौस पाक रहमतुल्ला अल की करामात से सोने में तब्दील हो गया था। हुजूर गौस आजम सैयदना शेख अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्ला अल खुद यह वाकया बयान करते हुए फरमाते हैं कि एक बार का जिक्र है कि जब मैं बगदाद शरीफ में मौजूद था और तालीम हासिल कर रहा था। जब मैं अपने घर को छोड़कर बगदाद शरीफ आया था, तो जो जात रहा मेरी वालिदा माजदा ने मुझे दिया था, अब वो भी खत्म हो चुका था। इस वजह से मुझे बहुत सी तंगदस्ती और आजमाइश का सामना करना पड़ा। मुझे कई दिनों तक खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। अब ऐसी हालत में मैं सोच रहा था कि किसके आगे हाथ फैला हं। अल्लाह के सिवा किसी से मदद मांगना मेरे लिए शर्मिंदगी का बाज था। दिल में सिर्फ अल्लाह का डर था कि किसी इंसान से कुछ कहूं या यह बताऊं कि मैं भूखा हूं। मैं ना तो किसी से मांग सकता था और ना ही कर्ज लेना चाहता था। इस दौरान मैं इराक के जंगलात में भी फिरता रहा, लेकिन उस जंगल की बिरानी में कुछ भी खाने को नहीं मिला। अब हाल यह था कि भूख की शिद्दत से आंतों से आवाजें आने लगी थीं। जिंदगी का यह आलम था कि ऐसा लगता था कि जान ही निकल जाएगी। लेकिन भूख की इस शिद्दत के बावजूद भी इस मकाम पर मुझे अल्लाह पाक के सिवा किसी इंसान के आगे झुकना गवारा नहीं था।
ऐसी हालत में मैंने अल्लाह रब्बुल इज्जत की बारगाह में इल्तजा की, "ऐ परवरदिगार आलम, तू ही मेरी मदद कर, तू ही अपनी तरफ से मेरे लिए कोई इंतजाम फरमा दे।" हुजूर गौस पाक रहमतुल्ला अल फरमाते हैं कि फिर मैं भूख की शिद्दत से मजबूर होकर एक दिन दरिया रजला की तरफ चला गया ताकि वहां से कोई सब्जी या कोई ऐसी चीज मिल जाए जो मेरे लिए पेट का सुकून बने। लेकिन वहां पहले ही बहुत से फकीर और दरवेश मौजूद थे। अगर कोई चीज उन्हें मिलती तो वो सब के दरमियान तकसीम हो जाती। मायूस होकर मैं शहर वापस आ गया ताकि वहां कुछ तलाश करूं, लेकिन वहां भी कुछ नहीं मिला। बिलखिरिया, मैं मस्जिद के एक कोने में जाकर बैठ गया। मैं अल्लाह रब्बुल इज्जत का जिक्र करता रहा, मगर हालत यह थी कि भूख से सर चकराने लगा, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और उठना मुश्किल हो गया। ऐसी हालत में अचानक एक गैब से आवाज आई, "ऐ अब्दुल कादिर, तुम यह बर्दाश्त नहीं कर सकोगे, उठो और किसी से कर्ज ले लो और अपने लिए रोटी का इंतजाम करो।" हुजूर गौस पाक रहमतुल्ला अल फरमाते हैं कि मैंने यह आवाज सुन तो ली थी, लेकिन मेरे दिल को यह बात मंजूर नहीं थी कि किसी से कर्ज मांगूं। मगर भूख की शिद्दत इतनी ज्यादा थी कि जान निकलने के करीब हो गई। इस आजमाइश के लम्हे में भी मेरा भरोसा अल्लाह पाक पर कामिल था और यही मेरे सब्र और ईमान का इम्तिहान था। भूख की शिद्दत आपको मजबूर कर रही थी कि आप दोबारा अपने कदम शहर की तरफ बढ़ाएं। दिल पर गम और आजमाइश का बोझ था, लेकिन इसी दौरान आपकी नजर एक नान बाई की दुकान पर पड़ी। वो नान बाई तंदूर से गरम-गरम रोटियां निकाल रहा था और उन रोटियों की खुशबू दिल को छू लेने वाली थी।
अल्लाह वाले लज्जत और जुबान के जायके के लिए नहीं खाते, बल्कि जिंदगी को बाकी रखने के लिए खाना उनकी मजबूरी होती है। यही सोचकर हुजूर गौस पाक रहमतुल्ला अल ने रोटी लेने का फैसला किया। यह फैसला किसी ख्वाहिश नफ्स का नतीजा नहीं था, बल्कि भूख की शिद्दत ने आपको ऐसा करने पर मजबूर किया। सरकारे बगदाद नान बाई के करीब पहुंचे। वो नान बाई आपको पहले कभी नहीं जानता था क्योंकि आपने कभी किसी से रोटी नहीं मांगी थी। लेकिन अल्लाह ताला ने उसके दिल में आपकी मोहब्बत और इज्जत डाल दी थी।
उसे महसूस हुआ कि आप एक खास बंदे हैं जो अपनी जबानी में ही अल्लाह की तरफ रुजू कर चुके हैं और अल्लाह रब्बुल इज्जत की रजा के तालिब हैं। उस नान बाई ने दिल से आपकी इज्जत की और दिल में यह बात तय कर ली कि आपके लिए रोटी का बंदोबस्त करना उसकी जिम्मेदारी है। यह अल्लाह की मेहरबानी और उसकी मखलूक के दिलों में मोहब्बत पैदा करने की कुदरत की एक मिसाल थी।
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